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व्रत का संपूर्ण फल पाने के लिए पूजा के दौरान जरूर पढ़ें यह कथा
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत बहुत ही खास व्रतों में से एक है। महीने में दो बार एकादशी का व्रत रखा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी 6 सितंबर, मंगलवार को है। जिसे परिवर्तिनी एकादशी, जलझूलनी एकादशी और पद्म एकादशी के नाम से भी जाना जाता हैं। इस दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा की जाती है। भाद्रपद शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु योग निद्रा में करवट बदलते हैं, इसलिए इसे परिवतर्नी एकादशी कहा जाता है। भगवान विष्णु के योग निद्रा का काल चार माह का होता है, जिसे चातुर्मास कहा जाता है। इस समय चातुर्मास चल रहा है। व्रत और पूजा के साथ ही इस एकादशी पर कथा सुनना भी जरूरी होता है। ऐसा कहते हैं कि तभी व्रत पूर्ण होता है और उसका फल मिलता है। तो आइए जानते हैं परिवतर्नी एकादशी की व्रत कथा के बारे में।
परिवतर्नी एकादशी व्रत कथा
एक बार युधिष्ठिर को भगवान श्रीकृष्ण से परिवतर्नी एकादशी व्रत के बारे में जानने की इच्छा हुई। तब श्रीकृष्ण ने उनको परिवतर्नी एकादशी के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि त्रेतायुग में दैत्यराज बलि भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। उसके पराक्रम से इंद्र और देवतागण भयभीत थे। इंद्रलोक पर उसका कब्जा था। उसके भय के डर से सभी देव भगवान विष्णु के पास गए।
इंद्र समेत सभी देवताओं ने दैत्यराज बलि के भय से मुक्ति के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु ने अपना वामन अवतार धारण किया। उसके बाद वे दैत्यराज बलि के पास गए और उससे तीन पग भूमि दान में मांगी। बलि ने वामन देव को तीन पग भूमि देने का वचन दिया।
तब वामन देव ने अपना विकराल स्वरुप धारण किया। उसके बाद एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में धरती नाप दी। फिर उन्होंने बलि से कहा कि वे अपना तीसरा पग कहां रखें। तब उसने कहा कि हे प्रभु! तीसरा पग आप उसके मस्तक पर रख दें। यह कहकर उसने अपना शीश प्रभु के सामने झुका दिया।
इसके बाद प्रभु वामन ने अपना तीसरा पग उसके सिर पर रखा। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे पाताल लोक भेज दिया। इस प्रकार से भगवान विष्णु के वामन अवतार की उद्देश्य पूर्ण हुआ और देवताओं को बलि के भय एवं आतंक से मुक्ति मिली।