धर्म-अध्यात्म

मनचाहा वरदान पाने के लिए दुर्गाष्टमी पर करें ये स्तुति का पाठ

Ritisha Jaiswal
9 Dec 2021 12:22 PM GMT
मनचाहा वरदान पाने के लिए दुर्गाष्टमी पर करें ये स्तुति का पाठ
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प्रत्येक हिंदी माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दुर्गाष्टमी के रूप में मनाया जाता है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | प्रत्येक हिंदी माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दुर्गाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। नवरात्रि के अलावा मासिक दुर्गाष्टमी का दिन मां दुर्गा का पूजन करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्रेष्ठ है। मार्गशीर्ष माह की दुर्गाष्टमी का पूजन 11 दिसंबर, दिन शनिवार को किया जाएगा। इस दिन दुर्गा जी के निमित्त व्रत रखने और उनका विधिवत पूजन करने का विधान है। मान्यता है कि इस दिन श्रद्धापूर्वक मां दुर्गा का पूजन करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं और उन्हें अभय का वरदान मिलता है।

मार्गशीर्ष या अगहन माह की दुर्गाष्टमी के दिन प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त हो कर दुर्गा मां का व्रत रखना चाहिए। इस दिन पूजन में दुर्गा मां को गुड़हल या लाल रंग के फूल अर्पित करें। दुर्गाष्टमी के पूजन में देवी भागवत में वर्णित दुर्गा स्तुति का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से मां दुर्गा जरूर प्रसन्न होती हैं और मनचाहा वरदान प्रदान करती हैं....
दुर्गा स्तुति –
दुर्गे विश्वमपि प्रसीद परमे सृष्ट्यादिकार्यत्रये
ब्रम्हाद्याः पुरुषास्त्रयो निजगुणैस्त्वत्स्वेच्छया कल्पिताः ।
नो ते कोऽपि च कल्पकोऽत्र भुवने विद्येत मातर्यतः
कः शक्तः परिवर्णितुं तव गुणॉंल्लोके भवेद्दुर्गमान् ॥ १ ॥
त्वामाराध्य हरिर्निहत्य समरे दैत्यान् रणे दुर्जयान्
त्रैलोक्यं परिपाति शम्भुरपि ते धृत्वा पदं वक्षसि ।
त्रैलोक्यक्षयकारकं समपिबद्यत्कालकूटं विषं
किं ते वा चरितं वयं त्रिजगतां ब्रूमः परित्र्यम्बिके ॥ २ ॥
या पुंसः परमस्य देहिन इह स्वीयैर्गुणैर्मायया
देहाख्यापि चिदात्मिकापि च परिस्पन्दादिशक्तिः परा ।
त्वन्मायापरिमोहितास्तनुभृतो यामेव देहास्थिता
भेदज्ञानवशाद्वदन्ति पुरुषं तस्यै नमस्तेऽम्बिके ॥ ३ ॥
स्त्रीपुंस्त्वप्रमुखैरुपाधिनिचयैर्हीनं परं ब्रह्म यत्
त्वत्तो या प्रथमं बभूव जगतां सृष्टौ सिसृक्षा स्वयम् ।
सा शक्तिः परमाऽपि यच्च समभून्मूर्तिद्वयं शक्तित-
स्त्वन्मायामयमेव तेन हि परं ब्रह्मापि शक्त्यात्मकम् ॥ ४ ॥
तोयोत्थं करकादिकं जलमयं दृष्ट्वा यथा निश्चय-
स्तोयत्वेन भवेद्ग्रहोऽप्यभिमतां तथ्यं तथैव ध्रुवम् ।
ब्रह्मोत्थं सकलं विलोक्य मनसा शक्त्यात्मकं ब्रह्म त-
च्छक्तित्वेन विनिश्चितः पुरुषधीः पारं परा ब्रह्मणि ॥ ५ ॥
षट्चक्रेषु लसन्ति ये तनुमतां ब्रह्मादयः षट्शिवा-
स्ते प्रेता भवदाश्रयाच्च परमेशत्वं समायान्ति हि ।
तस्मादीश्वरता शिवे नहि शिवे त्वय्येव विश्वाम्बिके
त्वं देवि त्रिदशैकवन्दितपदे दुर्गे प्रसीदस्व नः ॥ ६ ॥
॥ इति श्रीमहाभागवते महापुराणे वेदैः कृता दुर्गास्तुतिः सम्पूर्णा ॥

Ritisha Jaiswal

Ritisha Jaiswal

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