धर्म-अध्यात्म

शनि देव की कृपा प्राप्ति के लिए शनिवार के दिन इस कवच का पाठ जरूर करें

Kajal Dubey
12 March 2022 2:18 AM GMT
शनि देव की कृपा प्राप्ति के लिए शनिवार के दिन इस कवच का पाठ जरूर करें
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शनि देव की कृपा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आज शनिवार के दिन आप शनि देव (Shani Dev) की पूजा करें. शनि देव की कृपा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं. शनि देव संकटों से रक्षा करते हैं, दुख, कष्ट, दरिद्रता दूर करते हैं, जीवन में सफलता प्रदान करते हैं और कोर्ट कचहरी के मामलों में भी विजय दिलाते हैं. जिन लोगों के जीवन में शनि की साढ़ेसाती (Sade Sati), ढैय्या (Dhaiya) या शनि दोष (Shani Dosh) होता है, उनको कई प्रकार की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. इससे बचने के लिए कई प्रकार के ज्योतिष उपाय बताए जाते हैं. इसमें शनिवार व्रत, शनि चालीसा पाठ, शनि मंत्रों का जाप, शनि से जुड़ी वस्तुओं का दान, गरीब असहाय लोगों की मदद आदि शामिल हैं. आज आपको शनि कृपा की प्राप्ति के लिए दूसरा उपाय बता रहे हैं. शनिवार के दिन आप शनि कवच का पाठ करें, शनि देव की कृपा प्राप्त होगी और वे आपकी रक्षा करेंगे. आप चाहें तो प्रत्येक दिन शनि कवच का पाठ कर इसके सकारात्मक प्रभावों का लाभ उठा सकते हैं.

शनि कवच पाठ

अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः,
शूं कीलकम्, शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः

नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान्।
चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।

श्रृणुध्वमृषय: सर्वे शनिपीडाहरं महंत्।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।।

कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।

ऊँ श्रीशनैश्चर: पातु भालं मे सूर्यनंदन:।
नेत्रे छायात्मज: पातु कर्णो यमानुज:।।

नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा।
स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुज:।।

स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद:।
वक्ष: पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता।।

नाभिं गृहपति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा।
ऊरू ममाSन्तक: पातु यमो जानुयुगं तथा।।

पदौ मन्दगति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल:।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दन:।।

इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य:।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यज:।।

व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा।
कलत्रस्थो गतोवाSपि सुप्रीतस्तु सदा शनि:।।

अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।

इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।
जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभु:।।


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