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धर्म-अध्यात्म
बुधवार के दिन भगवान गणेश जी की कृपा पाने के लिए करें गणेश चालीसा,कवच और स्तुति का पाठ
Kajal Dubey
9 Feb 2022 10:50 AM GMT
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बुधवार का दिन गणेश जी को समर्पित होता है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बुधवार का दिन गणेश जी को समर्पित होता है। इस दिन दुःख और संकटों से मुक्ति पाने के लिए विघ्नहर्ता गणेश जी की पूजा-उपासना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि गणेश जी की भक्ति करने वाले साधकों को समस्त प्रकार की परेशानियों से निजात मिलता है। साथ ही घर में आनंद जैसा माहौल रहता है। हिंदी पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह के दोनों पक्षों यानी कृष्ण और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी और और विनायक चतुर्थी के दिन गणेश जी के निमित्त व्रत उपवास रख उनकी पूजा-उपासना की जाती है। अगर आप भी गणेश जी की कृपा पाना चाहते हैं, तो पूजा के दौरान गणेश कवच और स्तुति का पाठ जरूर करें-
गणेश कवच
संसारमोहनस्यास्य कवचस्य प्रजापति:।
ऋषिश्छन्दश्च बृहती देवो लम्बोदर: स्वयम्॥
धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोग: प्रकीर्तित:।
सर्वेषां कवचानां च सारभूतमिदं मुने॥
ॐ गं हुं श्रीगणेशाय स्वाहा मे पातुमस्तकम्।
द्वात्रिंशदक्षरो मन्त्रो ललाटं मे सदावतु॥
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं गमिति च संततं पातु लोचनम्।
तालुकं पातु विध्नेशःसंततं धरणीतले॥
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीमिति च संततं पातु नासिकाम्।
ॐ गौं गं शूर्पकर्णाय स्वाहा पात्वधरं मम॥
दन्तानि तालुकां जिह्वां पातु मे षोडशाक्षर:॥
ॐ लं श्रीं लम्बोदरायेति स्वाहा गण्डं सदावतु।
ॐ क्लीं ह्रीं विघन्नाशाय स्वाहा कर्ण सदावतु॥
ॐ श्रीं गं गजाननायेति स्वाहा स्कन्धं सदावतु।
ॐ ह्रीं विनायकायेति स्वाहा पृष्ठं सदावतु॥
ॐ क्लीं ह्रीमिति कङ्कालं पातु वक्ष:स्थलं च गम्।
करौ पादौ सदा पातु सर्वाङ्गं विघन्निघन्कृत्॥
प्राच्यां लम्बोदर: पातु आगन्य्यां विघन्नायक:।
दक्षिणे पातु विध्नेशो नैर्ऋत्यां तु गजानन:॥
पश्चिमे पार्वतीपुत्रो वायव्यां शंकरात्मज:।
कृष्णस्यांशश्चोत्तरे च परिपूर्णतमस्य च॥
ऐशान्यामेकदन्तश्च हेरम्ब: पातु चोर्ध्वत:।
अधो गणाधिप: पातु सर्वपूज्यश्च सर्वत:॥
स्वप्ने जागरणे चैव पातु मां योगिनां गुरु:॥
इति ते कथितं वत्स सर्वमन्त्रौघविग्रहम्।
संसारमोहनं नाम कवचं परमाद्भुतम्॥
श्रीकृष्णेन पुरा दत्तं गोलोके रासमण्डले
वृन्दावने विनीताय मह्यं दिनकरात्मज:॥
मया दत्तं च तुभ्यं च यस्मै कस्मै न दास्यसि।
परं वरं सर्वपूज्यं सर्वसङ्कटतारणम्॥
गुरुमभ्यर्च्य विधिवत् कवचं धारयेत्तु य:।
कण्ठे वा दक्षिणेबाहौ सोऽपि विष्णुर्नसंशय:॥
अश्वमेधसहस्त्राणि वाजपेयशतानि च।
ग्रहेन्द्रकवचस्यास्य कलां नार्हन्ति षोडशीम्॥
इदं कवचमज्ञात्वा यो भजेच्छंकरात्मजम्।
शतलक्षप्रजप्तोऽपि न मन्त्र: सिद्धिदायक:॥
ध्यान मंत्र
ओम सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्।
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्।।
मूल-पाठ
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।
त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।
हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।
महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित:।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।
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