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धर्म-अध्यात्म
सभी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए गुप्त नवरात्रि पर करें ये उपाय
Apurva Srivastav
19 Jun 2023 1:03 PM GMT

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आज यानी 19 जून दिन सोमवार से आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि का आरंभ हो चुका है जिसका समापन 28 जून को हो जाएगा। गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा की गुप्त आराधना करने से साधक को उत्तम फलों की प्राप्ति होती हैं और सुख सुविधाओं का भी आशीर्वाद मिलता हैं इस दौरान भक्त नौ दिनों का उपवास रखकर देवी मां दुर्गा के नौ अलग अलग रूपों की आराधना करते हैं।
गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की पूजा करना भी विशेष माना जाता हैं। ऐसा करने से देवी कृपा सदा बनी रहती हैं लेकिन इसी के साथ ही अगर गुप्त नवरात्रि में माता की आराधना के बाद वैकृतिकं रहस्यम् का पाठ किया जाए तो देवी दुर्गा अतिशीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं और अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं जिससे साधक के जीवन की सभी परेशानियों व समस्याओं का अंत हो जाता हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं ये चमत्कारी पाठ।
॥ अथ वैकृतिकं रहस्यम् ॥
ऋषिरुवाच
ॐ त्रिगुणा तामसी देवी सात्त्विकी या त्रिधोदिता।
सा शर्वा चण्डिका दुर्गा भद्रा भगवतीर्यते॥1॥
योगनिद्रा हरेरुक्ता महाकाली तमोगुणा।
मधुकैटभनाशार्थं यां तुष्टावाम्बुजासनः॥2॥
दशवक्त्रा दशभुजा दशपादाञ्जनप्रभा।
विशालया राजमाना त्रिंशल्लोचनमालया॥3॥
स्फुरद्दशनदंष्ट्रा सा भीमरूपापि भूमिप।
रूपसौभाग्यकान्तीनां सा प्रतिष्ठा महाश्रियः॥4॥
खड्गबाणगदाशूलचक्रशङ्खभुशुण्डिभृत्।
परिघं कार्मुकं शीर्षं निश्च्योतद्रुधिरं दधौ॥5॥
एषा सा वैष्णवी माया महाकाली दुरत्यया।
आराधिता वशीकुर्यात् पूजाकर्तुश्चराचरम्॥6॥
सर्वदेवशरीरेभ्यो याऽऽविर्भूतामितप्रभा।
त्रिगुणा सा महालक्ष्मीः साक्षान्महिषमर्दिनी॥7॥
श्वेतानना नीलभुजा सुश्वेतस्तनमण्डला।
रक्तमध्या रक्तपादा नीलजङ्घोरुरुन्मदा॥8॥
सुचित्रजघना चित्रमाल्याम्बरविभूषणा।
चित्रानुलेपना कान्तिरूपसौभाग्यशालिनी॥9॥
अष्टादशभुजा पूज्या सा सहस्रभुजा सती।
आयुधान्यत्र वक्ष्यन्ते दक्षिणाधःकरक्रमात्॥10॥
अक्षमाला च कमलं बाणोऽसिः कुलिशं गदा।
चक्रं त्रिशूलं परशुः शङ्खो घण्टा च पाशकः॥11॥
शक्तिर्दण्डश्चर्म चापं पानपात्रं कमण्डलुः।
अलङ्कृतभुजामेभिरायुधैः कमलासनाम्॥12॥
सर्वदेवमयीमीशां महालक्ष्मीमिमां नृप।
पूजयेत्सर्वलोकानां स देवानां प्रभुर्भवेत्॥13॥
गौरीदेहात्समुद्भूता या सत्त्वैकगुणाश्रया।
साक्षात्सरस्वती प्रोक्ता शुम्भासुरनिबर्हिणी॥14॥
दधौ चाष्टभुजा बाणमुसले शूलचक्रभृत्।
शङ्खं घण्टां लाङ्गलं च कार्मुकं वसुधाधिप॥15॥
एषा सम्पूजिता भक्त्या सर्वज्ञत्वं प्रयच्छति।
निशुम्भमथिनी देवी शुम्भासुरनिबर्हिणी॥16॥
इत्युक्तानि स्वरूपाणि मूर्तीनां तव पार्थिव।
उपासनं जगन्मातुः पृथगासां निशामय॥17॥
महालक्ष्मीर्यदा पूज्या महाकाली सरस्वती।
दक्षिणोत्तरयोः पूज्ये पृष्ठतो मिथुनत्रयम्॥18॥
विरञ्चिः स्वरया मध्ये रुद्रो गौर्या च दक्षिणे।
वामे लक्ष्म्या हृषीकेशः पुरतो देवतात्रयम्॥19॥
अष्टादशभुजा मध्ये वामे चास्या दशानना।
दक्षिणेऽष्टभुजा लक्ष्मीर्महतीति समर्चयेत्॥20॥
अष्टादशभुजा चैषा यदा पूज्या नराधिप।
दशानना चाष्टभुजा दक्षिणोत्तरयोस्तदा॥21॥
कालमृत्यू च सम्पूज्यौ सर्वारिष्टप्रशान्तये।
यदा चाष्टभुजा पूज्या शुम्भासुरनिबर्हिणी॥22॥
नवास्याः शक्तयः पूज्यास्तदा रुद्रविनायकौ।
नमो देव्या इति स्तोत्रैर्महालक्ष्मीं समर्चयेत्॥23॥
अवतारत्रयार्चायां स्तोत्रमन्त्रास्तदाश्रयाः।
अष्टादशभुजा चैषा पूज्या महिषमर्दिनी॥24॥
महालक्ष्मीर्महाकाली सैव प्रोक्ता सरस्वती।
ईश्वरी पुण्यपापानां सर्वलोकमहेश्वरी॥25॥
महिषान्तकरी येन पूजिता स जगत्प्रभुः।
पूजयेज्जगतां धात्रीं चण्डिकां भक्तवत्सलाम्॥26॥
अर्घ्यादिभिरलङ्कारैर्गन्धपुष्पैस्तथाक्षतैः।
धूपैर्दीपैश्च नैवेद्यैर्नानाभक्ष्यसमन्वितैः॥27॥
रुधिराक्तेन बलिना मांसेन सुरया नृप।
(बलिमांसादिपूजेयं विप्रवर्ज्या मयेरिता॥
तेषां किल सुरामांसैर्नोक्ता पूजा नृप क्वचित्।)
प्रणामाचमनीयेन चन्दनेन सुगन्धिना॥28॥
सकर्पूरैश्च ताम्बूलैर्भक्तिभावसमन्वितैः।
वामभागेऽग्रतो देव्याश्छिन्नशीर्षं महासुरम्॥29॥
पूजयेन्महिषं येन प्राप्तं सायुज्यमीशया।
दक्षिणे पुरतः सिंहं समग्रं धर्ममीश्वरम्॥30॥
वाहनं पूजयेद्देव्या धृतं येन चराचरम्।
कुर्याच्च स्तवनं धीमांस्तस्या एकाग्रमानसः॥31॥
ततः कृताञ्जलिर्भूत्वा स्तुवीत चरितैरिमैः।
एकेन वा मध्यमेन नैकेनेतरयोरिह॥32॥
चरितार्धं तु न जपेज्जपञ्छिद्रमवाप्नुयात्।
प्रदक्षिणानमस्कारान् कृत्वा मूर्ध्नि कृताञ्जलिः॥33॥
क्षमापयेज्जगद्धात्रीं मुहुर्मुहुरतन्द्रितः।
प्रतिश्लोकं च जुहुयात्पायसं तिलसर्पिषा॥34॥
जुहुयात्स्तोत्रमन्त्रैर्वा चण्डिकायै शुभं हविः।
भूयो नामपदैर्देवीं पूजयेत्सुसमाहितः॥35॥
प्रयतः प्राञ्जलिः प्रह्वः प्रणम्यारोप्य चात्मनि।
सुचिरं भावयेदीशां चण्डिकां तन्मयो भवेत्॥36॥
एवं यः पूजयेद्भक्त्या प्रत्यहं परमेश्वरीम्।
भुक्त्वा भोगान् यथाकामं देवीसायुज्यमाप्नुयात्॥37॥
यो न पूजयते नित्यं चण्डिकां भक्तवत्सलाम्।
भस्मीकृत्यास्य पुण्यानि निर्दहेत्परमेश्वरी॥38॥
तस्मात्पूजय भूपाल सर्वलोकमहेश्वरीम्।
यथोक्तेन विधानेन चण्डिकां सुखमाप्स्यसि॥39॥
॥ इति वैकृतिकं रहस्यं सम्पूर्णम्। ॥
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