धर्म-अध्यात्म

आर्थिक तंगी से मुक्ति के लिए इस दिन पूजा के समय करें बृहस्पति कवच का पाठ

Gulabi Jagat
28 Feb 2024 3:46 PM GMT
आर्थिक तंगी से मुक्ति के लिए इस दिन पूजा के समय करें बृहस्पति कवच का पाठ
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बृहस्पति कवच का पाठ
सनातन धर्म में सप्ताह के सभी दिन किसी न किसी देवी-देवता से जुड़े हुए हैं। ऐसे में गुरुवार का दिन संसार के रचयिता भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन श्री विष्णु और देवगुरु बृहस्पति की पूजा और व्रत करने की परंपरा है। ज्योतिषियों के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में बृहस्पति मजबूत है, तो इसका मतलब है कि उसे अपने कार्यों में सफलता मिलेगी और उसके भाग्य और सुख में वृद्धि होगी। वहीं कुंडली में बृहस्पति के कमजोर होने से व्यक्ति को जीवन में आर्थिक समेत कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
यदि आपकी कुंडली में बृहस्पति कमजोर है तो आपको गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और गुरु स्तोत्र और बृहस्पति कवच का पाठ करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इससे व्यक्ति को व्यापार में सफलता मिलती है और आर्थिक संकट दूर होता है।
बृहस्पति कवच (Brihaspati Kavach Lyrics)
अभीष्टफलदं देवं सर्वज्ञम् सुर पूजितम् ।
अक्षमालाधरं शांतं प्रणमामि बृहस्पतिम् ॥
बृहस्पतिः शिरः पातु ललाटं पातु मे गुरुः ।
कर्णौ सुरगुरुः पातु नेत्रे मे अभीष्ठदायकः ॥
जिह्वां पातु सुराचार्यो नासां मे वेदपारगः ।
मुखं मे पातु सर्वज्ञो कंठं मे देवतागुरुः ॥
भुजावांगिरसः पातु करौ पातु शुभप्रदः ।
स्तनौ मे पातु वागीशः कुक्षिं मे शुभलक्षणः ॥
नाभिं केवगुरुः पातु मध्यं पातु सुखप्रदः ।
कटिं पातु जगवंद्य ऊरू मे पातु वाक्पतिः ॥
जानुजंघे सुराचार्यो पादौ विश्वात्मकस्तथा ।
अन्यानि यानि चांगानि रक्षेन्मे सर्वतो गुरुः ॥
इत्येतत्कवचं दिव्यं त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः ।
सर्वान्कामानवाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥
गुरु स्तोत्र (Guru Stotram Lyrics)
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुस्साक्षात्परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरं।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
अनेकजन्मसंप्राप्तकर्मबन्धविदाहिने ।
आत्मज्ञानप्रदानेन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
मन्नाथः श्रीजगन्नाथो मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः।
ममात्मासर्वभूतात्मा तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
बर्ह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम्,
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं,
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ॥
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