धर्म-अध्यात्म

shani prakop : शनि प्रकोप से बचने के लिए शनिवार को करें शनि महाराज की पूजा

Tara Tandi
13 July 2024 7:57 AM GMT
shani prakop : शनि प्रकोप से बचने के लिए शनिवार को करें शनि महाराज की पूजा
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shani prakop ज्योतिष न्यूज़: हिंदू धर्म में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की साधना आराधना को समर्पित होता है वही शनिवार का दिन भगवान शनिदेव की पूजा अर्चना के लिए विशेष माना गया है इस दिन भक्त भगवान शनिदेव की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं मान्यता है कि ऐसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शनि देव कर्मों के दाता है और वो जातक को उसके कर्म के अनुसार फल प्रदान करते हैं अच्छे काम करने वालों को शनि शुभ फल देते हैं तो वही बुरे काम करने वालों को शनि महाराज दंड भी देते हैं ऐसे में अगर आप शनिदेव की कृपा पाना चाहते हैं और शनि प्रकोप से राहत चाहते हैं तो शनिवार के दिन शनि मंदिर जाकर भगवान की विधिवत पूजा करें साथ ही शनि कवच का पाठ भक्ति भाव से करें माना जाता है कि ऐसा करने से राहत मिलती है और शनि की कृपा से कल्याण होता है।
।। शनि वज्र पंजर कवच।।
नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान् ।
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद् वरदः प्रशान्तः ॥
शृणुध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महत् ।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् ॥
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम् ।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥
ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनन्दनः ।
नेत्रे छायात्मजः पातु पातु कणौं यमानुजः ॥
नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा ।
स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठं भुजौ पातु महाभुजः ॥
स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु-शुभप्रदः ।
वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्तथा ॥
नाभिं ग्रहपतिः पातु मन्दः पातु कटिं तथा ।
ऊरू ममान्तकः पातु यमो जानुयुगं तथा ॥
पादौ मन्दगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः ।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दनः ॥
इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य यः ।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवति सूर्यजः ॥
व्यय-जन्म-द्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोऽपि वा ।
कलत्रस्थो गतो वाऽपि सुप्रीतस्तु सदा शनिः ॥
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे ।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित् ॥
इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा ।
द्वादशाऽष्टमजन्मस्थदोषान्नाशयते सदा ।
जन्मलग्नस्थितान् दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभुः ॥
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