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धर्म-अध्यात्म
इस साल दो दिन रहेगी विजया एकादशी.....जानें डेट, शुभ मुहूर्त, पूजन विधि व व्रत पारण का समय
Bhumika Sahu
18 Feb 2022 5:05 AM GMT
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शास्त्रों में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी के नाम से जानते हैं। इस दिन भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा की जाती है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। शास्त्रों में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी के नाम से जानते हैं। इस दिन भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा की जाती है। मान्यता है कि विजया एकादशी व्रत करने वाले भक्त को कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। जानिए इस साल कब है विजया एकादशी-
विजया एकादशी 2022 डेट-
इस साल विजया एकादशी 26 और 27 फरवरी दो दिन रहेगी। एकादशी तिथि प्रारंभ 26 फरवरी को सुबह 10 बजकर 39 मिनट से होगा, जो कि 27 फरवरी को सुबह 08 बजकर 12 मिनट पर समाप्त होगी। पूजन का शुभ मुहूर्त 26 फरवरी को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट से 12 बजकर 57 मिनट तक रहेगा।
व्रत पारण का समय-
26 फरवरी को व्रत रखने वाले लोग एकादशी व्रत का पारण 27 फरवरी को दोपहर 01 बजकर 43 मिनट से शाम 04 बजकर 01 मिनट तक कर सकेंगे। 27 फरवरी को व्रत रखने वाले लोग 28 फरवरी को सुबह 06 बजकर 48 मिनट से 09 बजकर 06 मिनट तक व्रत रख सकेंगे।
विजया एकादशी महत्व-
पद्म पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने स्वयं नारद जी को उपदेश देते हुए कहा था, एकादशी महान पुण्य देने वाली होती है। कहा जाता है कि जो मनुष्य एकादशी का व्रत रखता है उसके पितृ और पूर्वज कुयोनि को त्याग स्वर्ग लोक चले जाते हैं।
विजया एकादशी पर ऐसे करें पूजा-
- एकादशी के दिन सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करके एकादशी व्रत का संकल्प लें।
- उसके बाद घर के मंदिर में पूजा करने से पहले एक वेदी बनाकर उस पर 7 धान (उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा) रखें।
- वेदी के ऊपर एक कलश की स्थापना करें और उसमें आम या अशोक के 5 पत्ते लगाएं।
- अब वेदी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखें।
- इसके बाद भगवान विष्णु को पीले फूल, ऋतुफल और तुलसी दल समर्पित करें।
- फिर धूप-दीप से विष्णु की आरती उतारें।
- शाम के समय भगवान विष्णु की आरती उतारने के बाद फलाहार ग्रहण करें।
- रात्रि के समय सोए नहीं बल्कि भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें।
- अगले दिन सुबह किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथा-शक्ति दान-दक्षिणा देकर विदा करें।
- इसके बाद खुद भी भोजन कर व्रत का पारण करें।
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