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इस बार पूर्णिमा तिथि पर पड़ रहा भद्रा का साया.....जानिए क्यों अशुभ माना जाता है भद्राकाल
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। फाल्गुन मास (Phalguna Month) की पूर्णिमा तिथि (Purnima Tithi) पर सूर्यास्त के बाद होलिका दहन करने का चलन है. इसके अगले दिन प्रतिपदा तिथि को रंगों से होली खेली जाती है. होलिका दहन के लिए तिथि को भद्राकाल (Bhadra Kaal) से मुक्त होना जरूरी है. भद्राकाल को शास्त्रों में अशुभ माना गया है. मान्यता है कि इसमें किए गए किसी भी काम में अशुभ परिणाम प्राप्त होते हैं. इस बार पूर्णिमा तिथि 17 मार्च को लगेगी और 18 मार्च को दोपहर 12:52 मिनट तक रहेगी. ऐसे में होलिका दहन 17 मार्च को होना चाहिए. लेकिन 17 मार्च को 01:20 बजे से भद्राकाल शुरू हो जाएगा और देर रात 12:57 बजे तक रहेगा. भद्राकाल में होलिका दहन नहीं किया जा सकता. ऐसे में होलिका दहन रात 12:58 बजे से लेकर रात 2:12 बजे तक ही किया जा सकता है. यहां जानिए कि आखिर क्या है भद्राकाल और इसे शास्त्रों में अशुभ क्यों बताया गया है.
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भद्रा के स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उन्हें पंचाग के एक प्रमुख अंग विष्टी करण में स्थान दे दिया. साथ ही कहा कि भद्रा अब तुम बव, बालव, कौलव आदि करणों के अंत में निवास करो. जो व्यक्ति तुम्हारे समय में गृह प्रवेश तथा अन्य मांगलिक कार्य करें, तो तुम उनके कामों में विघ्न डाल देना. जो तुम्हारा सम्मान न करे, उनके काम तुम बिगाड़ देना. ये कहकर ब्रह्मा जी अपने लोक को चले गए. इसके बाद से भद्रा सभी लोकों में भ्रमण करने लगीं. भद्रा युक्त समय को भद्राकाल कहा जाता है. भद्राकाल के समय में किसी भी तरह के शुभ काम करना वर्जित होता है.