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इस बार घोड़े पर सवार होकर आ रही हैं मां दुर्गा, जानें घटस्थापना का शुभ मुहूर्त
आने वाले नए हिंदू नववर्ष 'नल'नामक संवत्सर में मां दुर्गा अपने भक्तों के घर घोड़े पर सवार होकर पदार्पण कर रही हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार मां दुर्गा प्रत्येक नवरात्रि पर्व के प्रथम दिन अलग-अलग वाहनों पर सवार होकर अपने भक्तों को वरदान देने आती हैं। उनके वाहन के अनुसार ही मेदिनी ज्योतिष के फलित का विश्लेषण किया जाता है। वर्तमान रूद्रविंशति का पचासवां 'नल'नामक संवत्सर के मध्य पड़ने वाले बासन्तिक नवरात्रि 02अप्रैल, शनिवार को मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर भक्तों के घर पधारने वाली हैं। मां के वाहन के विषय में शास्त्रों में कहा गया है कि,'शशि सूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे। गुरौ शुक्रे च डोलायां बुधे नौका प्रकीर्त्तिता'। गजे च जलदा देवी छत्र भंगस्तुरंगमे। नौकायां सर्वसिद्धि स्यात डोलायां मरण ध्रुवम्।
अर्थात- रविवार और सोमवार को नवरात्रि का शुभारम्भ हो तो मां दुर्गा का वाहन हाथी है जो अत्यंत जल की वृष्टि कराने वाला संकेत होता है। शनिवार और मंगलवार को नवरात्रि का शुभारंभ हो तो मां का आगमन घोड़ा (तुरंग)पर होता है,जो राजा अथवा सरकार के परिवर्तन का संकेत देता है। गुरुवार और शुक्रवार को नवरात्रि का प्रथम दिन पड़े तो मां का आगमन डोली में होता है जो जन-धन की हानि,तांडव,रक्तपात होना बताता है। यदि नवरात्रि का शुभारंभ बुधवार हो तो मां दुर्गा 'नौका'पर विराजमान होकर आती हैं और अपने सभी भक्तों को अभीष्ट सिद्धि देती है। 02 अप्रैल शनिवार से आरंभ होने वाले नवरात्रि के दिन माँ दुर्गा नौका पर सवार होकर अपने भक्तों के घर आ रही हैं। यह विश्व पटल पर कई देशों में शासन सत्ता परिवर्तन का संकेत भी है। सभी सरकारें कठोर निर्णय लेने में समर्थ रहेगीं।
नवरात्रि शनिवार को आरम्भ होने से सभी राज्यों के सूर्योदय के अनुसार शुभ कार्यों के लिए अशुभ 'राहुकाल'सुबह औसतन 09 बजे से 10 बजकर 30 मिनट तक रहेगा किंतु इसे अपने शहर के स्थानीय सूर्योदय के अनुसार ही देखें। इस काल को किसी भी पूजा के लिए अशुभ माना गया है किंतु 'राहु' ग्रह की शान्ति के लिए इसे श्रेष्ठ कहा गया है।
मुहूर्त ग्रंथों के अनुसार शिव की पूजा-आराधना चर लग्न में,विष्णु की स्थिर एवं दुर्गा की आरधना द्विस्वभाव लग्न में करना श्रेष्ठ माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 'दुर्गा'मां की पूजा के लिए मिथुन,कन्या,धनु तथा मीन द्विस्वभाव राशियां कही गयीं हैं,इन लग्नों की उपस्थिति में 'कलश'स्थापन श्रेष्ठ माना गया है। इसके अतिरिक्त कलश स्थापन चक्र सुदर्शन मुहूर्त (अभिजित) में भी करना श्रेष्ठ माना गया हैं। यदि अभिजित मुहूर्त में कलश स्थापन कर पाना संभव न हो तो अनुकूल लाभ,शुभ और अमृत चौघडिया श्रेष्ठ मानी गयी है यदि किसी संयोगवश, इनमें भी आप कलश स्थापन न कर पायें तो सोम,बुध,गुरु और शुक्र में से किसी की भी होरा में कलश स्थापन का सकते हैं। 2 अप्रैल शनिवार को सुबह 6 बजकर 22मिनट से 8बजकर 31 मिनट के मध्य का मुहूर्त श्रेष्ठ रहेगा यदि किसी कारणवश इस काल में कलश स्थापन न कर पायें तो दोपहर को अभिजित मुहूर्त में करें जो औसतन 12 बजे से 01 बजे के मध्य तक रहेगा इसे स्थानीय सूर्योदय के अनुसार ही विचार करें।