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धर्म-अध्यात्म
इस बार 25 मार्च को मनाया जाएगा बसौड़ा, जानें पूजा विधि और व्रत कथा
Bhumika Sahu
20 March 2022 3:28 AM GMT
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यदि घर-परिवार में शीतला माता के कुण्डारे भरने की प्रथा हो तो कुंभकार के यहां से एक बड़ा कुण्डारा तथा दस छोटे कुण्डारे मंगाकर, छोटे कुण्डारों को बासी व्यंजनों से भरकर, बड़े कुण्डारे में रख जलती हुई होली को दिखाए गए कच्चे सूत से लपेट कर भीगे बाजरे एवं हल्दी से पूजन करें.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। तिथि के हिसाब से इस बार शुक्रवार, 25 मार्च को शीतलाष्टमी (Sheetla Ashtami) मनाया जाएगा. शीतलाष्टमी को बसौड़ा (Basoda) के नाम से भी जाना जाता है. यह व्रत, चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी या लोकाचार अपने-अपने क्षेत्र के आधार पर, होली (Holi) के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार अथवा गुरुवार को भी किया जाता है. शुक्रवार को भी इस पूजन का विधान है. परंतु रविवार, शनिवार अथवा मंगलवार को शीतला का पूजन नहीं करना चाहिए. हालांकि, इन दिनों में यदि अष्टमी तिथि पड़ जाए तो पूजन अवश्य कर लेना चाहिए. इस वर्ष तिथि अनुसार शुक्रवार, 25 मार्च के दिन शीतलाष्टमी पड़ रही है. इस व्रत के प्रभाव से व्रती का परिवार ज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े-फुंसियों, नेत्रों से संबंधित सभी विकार, फुंसियों के चिह्न आदि रोगों और दोषों से मुक्त हो जाता है.
ये व्रत करने से शीतला देवी प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं. हर गांव, नगर तथा शहर में शीतला माता का मठ होता है. मठ में शीतला का स्वरूप भी अलग-अलग तरह का देखा जाता है. शीतलाष्टकम् में शीतला माता को रासभ (गर्दभ-गधा) के ऊपर सवार दर्शनीय रूप में वर्णित किया गया है. अतः व्रत के दिन शीतलाष्टक का पाठ करना चाहिए.
व्रत की विधि
इस दिन शीतला माता को भोग लगाने वाले पदार्थ मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी, साग, दाल, मीठा भात, फीका भात, मौंठ, मीठा बाजरा, बाजरे की मीठी रोटी, दाल की भरवा पूड़ियां, रस, खीर आदि एक दिन पूर्व ही सायंकाल में बना लिए जाते हैं. रात्रि में ही दही जमा दिया जाता है. इसलिए इसे बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है. जिस दिन व्रत होता है उस दिन गर्म पदार्थ नहीं खाए जाते. इसी कारण घर में चूल्हा भी नहीं जलता. इस व्रत में पांचों उंगली हथेली सहित घी में डुबोकर रसोईघर की दीवार पर छापा लगाया जाता है. उस पर रोली और अक्षत चढ़ाकर शीतलामाता के गीत गाए जाते हैं.
सुगंधित गंध, पुष्पादि और अन्य उपचारों से शीतला माता का पूजन कर शीतलाष्टकम् का पाठ करना चाहिए. शीतला माता की कहानी सुनें. रात्रि में दीपक जलाने चाहिए एवं जागरण करना चाहिए. बसौड़ा के दिन प्रातः एक थाली में पूर्व संध्या में तैयार नैवेद्य में से थोड़ा-थोड़ा सामान रखकर, हल्दी, धूपबत्ती, जल का पात्र, दही, चीनी, गुड़ और अन्य पूजनादि सामान सजाकर परिवार के सभी सदस्यों के हाथ से स्पर्श कराके शीतला माता के मंदिर जाकर पूजन करना चाहिए. छोटे-छोटे बालकों को साथ ले जाकर उनसे माता जी को ढोक भी दिलानी चाहिए. होली के दिन बनाई गई गूलरी (बड़कुल्ला) की माला भी शीतला मां को अर्पित करने का विधान है.
इस दिन चौराहे पर जल चढ़ाकर पूजा करने की परंपरा भी है. शीतला मां की पूजा के बाद गर्दभ का भी पूजन कर मंदिर के बाहर काले श्वान (कुत्ते) के पूजन एवं गर्दभ (गधा) को चने की दाल खिलाने की परंपरा भी है. घर आकर सभी को प्रसाद एवं मोठ-बाजरा का वायना निकालकर उस पर रुपया रखकर अपनी सास के चरण स्पर्श करने की प्रथा का भी अवश्य पालन करना चाहिए. इसके बाद किसी वृद्धा मां को भोजन कराकर और वस्त्र दक्षिणा आदि देकर विदा करना चाहिए.
यदि घर-परिवार में शीतला माता के कुण्डारे भरने की प्रथा हो तो कुंभकार के यहां से एक बड़ा कुण्डारा तथा दस छोटे कुण्डारे मंगाकर, छोटे कुण्डारों को बासी व्यंजनों से भरकर, बड़े कुण्डारे में रख जलती हुई होली को दिखाए गए कच्चे सूत से लपेट कर भीगे बाजरे एवं हल्दी से पूजन करें.
इसके बाद परिवार के सभी सदस्य ढोक (नमस्कार) दें. पुनः सभी कुण्डारों को गीत गाते हुए शीतला माता के मंदिर में जाकर चढ़ा दें. वापसी के समय भी गीत गाते हुए आएं. पुत्र जन्म और विवाह के समय जितने कुण्डारे हमेशा भरे जाते हैं उतने और भरकर शीतला मां को चढ़ाने का विधान भी है. पूजन के लिए जाते समय नंगे पैर जाने की परंपरा है.
बसौड़ा व्रत कथा
किसी गांव में एक बुढ़िया माई रहती थी. शीतला माता का जब बसौड़ा आता तो वह ठंडे भोजन से कुण्डे भरकर पूजन करती थी और स्वयं ठंडा भोजन ही करती थीं. उसके गांव में और कोई भी शीतला माता की पूजा नहीं करता था. एक दिन उस गांव में आग लग गई, जिसमें उस बुढ़िया मां की झोपड़ी को छोड़कर सभी लोगों की झोपड़ियां जल गईं. जिससे सभी को बड़ा दुःख हुआ और इसके साथ ही बुढ़िया की झोपड़ी को सही-सलामत देखकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ.
तब सब लोग उस बुढ़िया के पास आए और इसका कारण पूछा. बुढ़िया ने कहा कि मैं तो बसौडे़ के दिन शीतला माता की पूजा करके ठंडी रोटी खाती हूं, तुम लोग यह काम नहीं करते. इसी कारण मेरी झोपड़ी शीतला मां की कृपा से बच गई और तुम सबकी झोपड़ियां जल गईं. तभी से शीतलाष्टमी (बसौड़े) के दिन पूरे गांव में शीतला माता की पूजा होने लगी तथा सभी लोग एक दिन पहले के बने हुए बासी पदार्थ (व्यंजन) ही खाने लगे. हे शीतला माता! जैसे आपने उस बुढ़िया की रक्षा की, वैसे ही सबकी रक्षा करना.
बासी भोजन से ही शीतला माता की पूजा वैशाख माह के कृष्ण पक्ष के किसी भी सोमवार या किसी दूसरे शुभवार को भी करने का विधान है. वैशाख मास में इसे बूढ़ा बसौड़ा के नाम से तथा चैत्र कृष्ण पक्ष में बसौड़ा के नाम से जाना जाता है. ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष के दो सोमवारों और सर्दियों के किसी भी माह के दो सोमवारों को भी शीतला माता का पूजन स्त्रियों के द्वारा किया जाता है, परंतु चैत्र कृष्ण पक्ष का बसौड़ा सर्वत्र मनाया जाता है.
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