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हर कोई अपने जीवन में सुख शांति चाहता है इसके लिए लोग प्रयास भी खूब करते हैं लेकिन फिर भी अगर जीवन में परेशानियां बनी रहती हैं या फिर दुख और विपत्तियां आपका पीछा नहीं छोड़ रही हैं तो ऐसे में ईश्वर की शरण लेना उत्तम उपाय माना जाता हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सप्ताह में शनिवार का दिन कर्मों के दाता श्री शनि महाराज को समर्पित हैं और समर्पित दिन पर अगर भगवान की पूजा की जाए तो साधक के सभी कष्टों का अंत हो जाता हैं।
ऐसे में अगर आप भी परिवार पर आई हर विपत्ति से छुटकारा पाना चाहते हैं तो आज शनिवार के दिन शनि मंदिर जाए और वहां शनि प्रतिमा पर सरसों तेल अर्पित करें इसके साथ ही प्रभु के समक्ष सरसों तेल का एक दीपक जलाकर दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ मन ही मन 11 बार करें मान्यता है कि इस उपाय को करने से घर परिवार पर आने वाली हर विपत्ति का नाश हो जाता हैं साथ ही शनि महाराज प्रसन्न होकर सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
दशरथ कृत शनि स्तोत्र—
अस्य श्रीशनैश्चरस्तोत्रस्य । दशरथ ऋषिः ।
शनैश्चरो देवता । त्रिष्टुप् छन्दः ॥
शनैश्चरप्रीत्यर्थ जपे विनियोगः ।
दशरथ उवाच ॥
कोणोऽन्तको रौद्रयमोऽथ बभ्रुः कृष्णः शनिः पिंगलमन्दसौरिः ।
नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ १॥
सुरासुराः किंपुरुषोरगेन्द्रा गन्धर्वविद्याधरपन्नगाश्च ।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ २॥
नरा नरेन्द्राः पशवो मृगेन्द्रा वन्याश्च ये कीटपतंगभृङ्गाः ।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ३॥
देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र सेनानिवेशाः पुरपत्तनानि ।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ४॥
तिलैर्यवैर्माषगुडान्नदानैर्लोहेन नीलाम्बरदानतो वा ।
प्रीणाति मन्त्रैर्निजवासरे च तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ५॥
प्रयागकूले यमुनातटे च सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम् ।
यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ६॥
अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस्तदीयवारे स नरः सुखी स्यात् ।
गृहाद् गतो यो न पुनः प्रयाति तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ७॥
स्रष्टा स्वयंभूर्भुवनत्रयस्य त्राता हरीशो हरते पिनाकी ।
एकस्त्रिधा ऋग्यजुःसाममूर्तिस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ८॥
शन्यष्टकं यः प्रयतः प्रभाते नित्यं सुपुत्रैः पशुबान्धवैश्च ।
पठेत्तु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः प्राप्नोति निर्वाणपदं तदन्ते ॥ ९॥
कोणस्थः पिङ्गलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः ।
सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः ॥ १०॥
एतानि दश नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत् ।
शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद्भविष्यति ॥ ११॥
॥ इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे श्री दशरथ कृत शनि स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
Tara Tandi
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