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बिहार की राजधानी पटना में स्थित पटन देवी मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में एक है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| बिहार की राजधानी पटना में स्थित पटन देवी मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में एक है। देवी भागवत पुराण के अनुसार, इस जगह पर सती की दाहिनी जांघ गिरी थी। इसलिए इस स्थान को शक्तिपीठ के रूप में मान्यता प्राप्त है। तंत्र चूड़ामणि ग्रन्थ के अनुसार बड़ी पटन देवी तंत्र साधना के लिए महत्वपूर्ण स्थान हैं। यहां भगवती दुर्गा के तीन रूपों- महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की पूजा होती है। कुछ ऐतिहासिक ग्रंथों में यह भी लिखा मिलता है कि प्राचीन काल में इनका नाम मां सर्वानंदकरी पटनेश्वरी था।
इस मंदिर का मुख गंगा नदी की ओर उत्तर दिशा में है। देवी मां की मूर्ति काले पत्थरों से निर्मित है। इस मूर्ति की स्थापना कब हुई, इसकी तिथि ज्ञात नहीं है। किंवदंतियों के अनुसार, यह मूर्ति सतयुग काल की है। कालांतर में पाटलिपुत्र के सम्राट अशोक ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। मंदिर परिसर में ही एक हवनकुंड है, जिसे योनिकुंड कहा जाता है। इसके विषय में मान्यता है कि इस कुंड में डाली जाने वाली हवन सामग्री भूगर्भ में चली जाती है।
ज्ञात हो कि पटना में बड़ी पटन देवी मंदिर से मात्र 4 किलोमीटर दूरी पर छोटी पटन देवी का मंदिर भी है। यह भी एक शक्तिपीठ है। यहां सती की पीठ का हिस्सा गिरा था। उल्लेखनीय है कि बड़ी पटन देवी जहां एक वैदिक और तांत्रिक शक्तिपीठ हैं, वहीं छोटी पटन देवी पटना की नगर रक्षिका यानी पटना की नगर देवी हैं। किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले और बाद में नगरवासी आदिकाल से छोटी पटन देवी यानी पटनेश्वरी की पूजा करते हैं। कुछ इतिहासकारों के अनुसार,प्राचीन काल में छोटी पटन देवी दोनों देवियों में प्रमुख मानी जाती थीं।
दोनों ही शक्तिपीठों में स्थापित देवी मां को बहन माना जाता है और भक्त इसी भावना से दोनों देवियों की पूजा करते हैं। इसलिए दोनों ही मंदिरों में तीनों देवियों की मूर्तियां विराजमान हैं, किन्तु छोटी पटन देवी में मूर्ति स्वर्णाभूषणों से आच्छादित है। मूर्ति पर स्वर्ण के छत्र और चंवर हैं।
किंवदंतियों के अनुसार, छोटी पटन देवी की तीनों मूर्ति इसी गड्ढे में मिली थीं। जहां से निकाल कर इस मंदिर में उन्हें स्थापित किया गया था। मंदिर में वर्ष भर पूजा के लिए भीड़ लगी रहती है। बड़ी पटन देवी मंदिर में देवी को दिन में कच्ची सामग्री एवं रात में पक्की सामग्री का भोग लगाया जाता है। मंदिर के नजदीक ही भैरव बाबा की प्रतिमा है। देवी पूजन के बाद भैरव बाबा की पूजा भी नियमित रूप से की जाती है। यहां आदि काल से चली आ रही वैदिक और तांत्रिक विधि से नियमित पूजा होती है। वैदिक पूजा सार्वजनिक रूप से होती है, वही तांत्रिक पूजा के समय मंदिर का पट बंद रहता है।
कैसे पहुंचें: बिहार के पटना शहर तक सभी प्रमुख शहरों से ट्रेनें व फ्लाइट चलती हैं। पटना जंक्शन से बड़ी पटन देवी मंदिर 8.5 किलोमीटर की दूरी और पटना बस स्टैंड से 10 किलोमीटर की दूरी पर है, जबकि पटना एअरपोर्ट से 14 किलोमीटर है।
Tara Tandi
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