धर्म-अध्यात्म

ऐसा तब होता है जब आप जमीन पर कांवर रखते

Sonam
24 July 2023 9:20 AM GMT
ऐसा तब होता है जब आप जमीन पर कांवर रखते
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मैं मंजू शर्मा, शिव भक्त हूं। बैंक में काम करती हूं। नोएडा के चौड़ा रघुनाथपुर में मेरा घर है। 15 जुलाई को शिवरात्रि के दिन हरिद्वार से लाए गए गंगा जल से ईश्वर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया।

मैंने हरिद्वार से नोएडा तक की कांवड़ यात्रा अपने जीवन में आठवीं बार पूरी की है। नौ जुलाई को हरिद्वार से कांवड़ उठाया और 14 जुलाई को नोएडा पहुंच गई। नोएडा का कलरिया शिव बाबा मंदिर सिद्धपीठ है, जहां ईश्वर शंकर को मैंने जल अर्पित किया।

कोविड के दौरान पति के फेफड़े 90% खराब हो गए

जीवन में कई संघर्ष देखे हैं। जब कोविड की पहली वेव आई तो पति इसकी चपेट में आ गए। उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया। 90% तक उनके फेफड़े खराब हो गए।

स्थिति इतनी खराब हो गई कि उनकी जान पर आ बनी। तब किसी हॉस्पिटल में भी स्थान नहीं मिल रही थी। ईश्वर शिव की कृपा रही कि संक्रमण धीरे-धीरे कम हुआ और वो सुरक्षित घर लौटे।

जन्म के चार घंटे बाद बेटे का सिर फटा, सर्जरी पर काफी पैसे खर्च हुए

मुझे एक बेटी और दो बेटे हैं। बेटी बड़ी है और पीएचडी कर रही है। एक समय था। जब मुझे अपने दोनों बेटों के उपचार में काफी परेशानियां झेलनी पड़ी।

बड़े बेटे के जन्म के महज 4 घंटे ही बीते होंगे कि मेरी सम्बन्धी के हाथों से वह गिर गया और किसी धारदार लोहे की चीज से टकरा गया। इससे उसका सिर फट गया। तब उसकी जान पर बन आई।

साढ़े तीन वर्ष तक बेटे को ऑब्जर्वेशन के लिए एम्स दिल्ली में रखा गया। इसके बाद सर्जरी की गई।

सर्जरी भी काफी जटिल थी। जर्मनी से स्पेशल ट्यूब्स इंपोर्ट की गईं तब जाकर सर्जरी हुई। इसमें लाखों रुपए खर्च हुए।

छोटे बेटे का पांव जन्म से ही मुड़ा हुआ था

बड़े बेटे के आठ वर्ष बाद छोटे बेटे का जन्म हुआ। लेकिन वह क्लबफुट का शिकार हो गया। जन्म से ही उसका दाहिना पैर मुड़ा हुआ था। डेढ़ वर्ष की उम्र में एम्स में उसकी भी सर्जरी हुई।

तब घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई।

पति ट्रांसपोर्ट के बिजनेस में थे, लेकिन कमाई उतनी ही कि घर किसी तरह चल सके।

परिवार को संभालने के लिए बैंक में जॉब प्रारम्भ की

मेरा मायका बुलंदशहर के इमरतीनगर में है। 6 बहन और दो भाइयों वाले परिवार में परवरिश हुई। किसी तरह 10वीं तक पढ़ सकी।

जब ससुराल में परिवार पर संकट आया तो मैं घबराई नहीं, स्वयं को मजबूत बनाया।

परिस्थितियों से लड़ने का जज्बा पैदा किया।

पंजाब नेशनल बैंक में कांट्रैक्ट बेसिस पर एक आदमी की आवश्यकता थी। मुझे वो जॉब मिल गई। जॉब करते हुए मुझे 13 वर्ष हो गए। बैंक में फाइल इधर से उधर ले जाना, दस्तावेज़ एक ब्रांच से दूसरे ब्रांच भेजना जैसे काम करती हूं। कई बार मुझे बैंक में परमानेंट करने की बात हुई लेकिन आज तक कांट्रैक्ट पर ही काम कर रही हूं।

हरिद्वार से नोएडा तक 220 किमी तक कांवड़ा यात्रा पूरी करने के बाद मंजू घर पहुंचीं। बड़े बेटे और पति के साथ मंजू शर्मा।

गंभीर रूप से बीमार पड़ी, हौसला नहीं हारी

बेटी ने नेट क्लियर किया, बड़ा बेटा जॉब करने लगा तब लगा कि चलो अब सबकुछ ठीक हो गया है। पर प्रभु की ख़्वाहिश के आगे किसका वश चलता है।

मैं भी गंभीर रूप से बीमार हो गई। उपचार के लिए फिर हॉस्पिटल का चक्कर लगाना पड़ा।

इसके उपचार में भी लंबा समय लगा। हाइपरथर्मिया ट्रीटमेंट या थर्मल ट्रीटमेंट लेना शुरु किया।

यह कितना कारगर रहा, नहीं कह सकती। लेकिन चक्कर आना, उल्टी, थकान जैसी कठिनाई हमेशा होती रही।

सात वर्ष के बाद कांवड़ यात्रा

अब तक मैंने आठ बार कांवड़ यात्रा की है। इस बार सात वर्ष के बाद यह अवसर मिल सका। जब हरिद्वार गई तो गंगा में पानी काफी बढ़ा हुआ था। हमने भोलेनाथ का नाम स्मरण किया और गंगा में डुबकी लगाई। जैसी मान्यता है, मैंने गंगा से ही बालू-मिट्‌टी निकालकर शिवलिंग बनाया और फिर उसका जलाभिषेक किया। मुझे ऐसा करता देख कई लोगों ने इसी तरह शिवलिंग बनाया।

हर पांच किमी पर रुककर सुस्ताती

घर पर रहते हुए भी पैदल चलने का कोई खास कोशिश नहीं किया। ज्यादातर समय नंगे पैर रहती ताकि इसकी आदत बनी रहे। सात वर्ष बाद कांवड़ उठाया तो थोड़ी कठिनाई हुई।

लेकिन कांवड़ियों को देख उत्साह से भर उठती। जब कांवड़ में 20-20 लीटर जल ले जाते देखती तो लगता कि सब भोलेनाथ की कृपा है। मैं भी उनके साथ कदमताल करते हुए आगे बढ़ती।

हर पांच किमी चलने के बाद थोड़ी देर रुककर शरीर को आराम देती।

कांवड़ यात्रा में कई नियमों का ध्यान रखा जाता है

कांवड़ यात्रा में कई तरह के धार्मिक नियमों का ख्याल रखना पड़ता है। रास्ते में जहां कहीं भी आप रुकते हैं तो कांवड़ को जमीन पर नहीं रख सकते।

इसे हमेशा स्टैंड या डाली पर ही लटकाकर रखा जाता है। यदि गलती से जमीन पर कांवड़ रख दिया तो फिर से कांवड़ में पवित्र जल भरना होता है।

हरिद्वार से नोएडा के बीच रूड़की, मुजफ्फरनगर, बुढ़ाना, गाजियाबाद में हर थोड़ी दूरी पर ऐसे स्टैंड बने होते हैं, जहां आप सरलता से कांवड़ रख सकते हैं।

कांवड़ को हमेशा स्नान करने के बाद ही उठाना चाहिए।

खाना खाने, सोने, टॉयलेट जाने के बाद बिना स्नान किए कांवड़ नहीं उठा सकते।

वैसे कांवड़ भी कई तरह के हैं सामान्य कांवड़, डाक कांवड़, खड़ी कांवड़ और दांडी कांवड़। हर कांवड़ के अपने नियम और महत्व होते हैं।

हरिद्वार से जब जल लेकर आते हैं तो शिवालयों में कांवड़ के हिसाब से तैयारी होती है।

मुफ्त में कहीं नहीं खाया, न ही किसी से कोई सेवा ली

हरिद्वार से नोएडा के बीच हर स्थान रास्ते में लोग सेवा करने को तत्पर दिखते हैं। लोग खाना खिलाते हैं, पानी पिलाते हैं। पैरों में छाले पड़ने, भीगने पर बुखार आने, शरीर में दर्द होने पर संस्थाओं के लोग दवा देते हैं।

रास्ते में लोग मुझसे पूछते ‘भोली! खाना ले’। मैं इनकार कर देती। स्त्री कांवड़ियों को ‘भोली’ और पुरुष कांवड़ियों को ‘भोले’ कहते हैं।

मैं सड़क किनारे बने ढाबों और होटलों में अपने पैसों से ही खाने-पीने की चीजें खरीदती। भोलेनाथ की कृपा रही कि पांच दिनों में 220 किमी की यात्रा तय कर सकुशल नोएडा घर पहुंच गई। पैरों के तलवे थोड़े कठोर हुए लेकिन जख्म नहीं बने।

जलाभिषेक के बाद ही घर आई

शिवरात्रि से एक दिन पहले ही मैं नोएडा पहुंच गई। यहां मंदिर मेरे घर से कुछ ही दूरी पर है। लेकिन मैं मंदिर के बाहर ही बैठी रही।

रातभर कांवड़ियों के साथ शि‌व के भक्ति गीत बज रहे थे। अगले दिन सुबह ईश्वर शिव को जलाभिषेक कर घर लौटी।

2016 तक दंपती साथ ही कांवड़ यात्रा करते

सात वर्ष पहले तक हम दंपती साथ में ही कांवड़ यात्रा करते। लेकिन पति को स्लिप डिस्क की कठिनाई हो गई। उन्हें चलने-फिरने में भी परेशानी होने लगी।

इसलिए अकेले ही कांवड़ यात्रा करनी पड़ी। हालांकि पति का भी कांवड़ मैं इस बार लेकर गई।

मैं जब हरिद्वार से कांवड़ यात्रा की तैयारी कर रही थी तब मेरा छोटा बेटा केदारनाथ गया हुआ था।

मुश्किलें कितनी भी हों, घबराएं नहीं

परेशानियों के बादल छाएं तो धीरज की चादर ओढ़ लें। ईश्वर में भरोसा रखें क्योंकि ये बोला जाता है कि विश्वास पहाड़ों को हिला देता है। जीवन में दुख तो आते ही रहते हैं इनसे घबरा कर भागे क्यों? जैसे सुख में रहते हैं वैसे ही दुख के दिनों में अच्छी सोच और अच्छे कर्मों के साथ हौसला बनाए रखें।

Sonam

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