धर्म-अध्यात्म

मोक्ष के द्वार खोलता है आत्मा की शुद्धि का यह पर्व, जाने विस्तार से

Tulsi Rao
5 Sep 2021 4:56 PM GMT
मोक्ष के द्वार खोलता है आत्मा की शुद्धि का यह पर्व, जाने विस्तार से
x
भाद्रपद मास में मनाए जाने वाला पर्युषण पर्व जैन समाज का महत्वपूर्ण पर्व है। पर्युषण का अर्थ है परि यानी चारों ओर से, उषण यानी धर्म की आराधना। यह पर्व भगवान महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म पर चलना सिखाता है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भाद्रपद मास में मनाए जाने वाला पर्युषण पर्व जैन समाज का महत्वपूर्ण पर्व है। पर्युषण का अर्थ है परि यानी चारों ओर से, उषण यानी धर्म की आराधना। यह पर्व भगवान महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म पर चलना सिखाता है तथा मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है। पर्युषण के दो भाग हैं। पहला तीर्थंकरों की पूजा, सेवा, स्मरण एवं दूसरा व्रतों के माध्यम से शारीरिक, मानसिक, वाचिक तप में स्वयं को पूरी तरह समर्पित करना।

श्वेतांबर समाज आठ दिन तक पर्युषण पर्व मनाता है जिसे अष्टान्हिका कहते हैं, जबकि दिगंबर 10 दिन तक इस पर्व को मनाते हैं जिसे दशलक्षण कहा जाता है। दशलक्षण पर्व के दस दिनों में श्रावक अपनी शक्ति अनुसार व्रत-उपवास करते हैं। ज्यादा से ज्यादा समय भगवान की पूजा-अर्चना में व्यतीत करते हैं। दशलक्षण पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष पंचमी से शुरू होकर चौदस तक चलता है। चौदस के दिन अन्नत चतुर्दशी होती है, जिसे जैन धर्म में संवत्सरी कहा जाता है। इन दिनों साधुओं और गृहस्थों के लिए कर्तव्य बताए गए हैं। यह पर्व बुरे कर्मों का नाश कर हमें सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह पर्व सिखाता है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि की प्राप्ति में ज्ञान व भक्ति के साथ सद्भावना का होना अनिवार्य है। पर्युषण पर्व को आत्मा की शुद्धि का पर्व माना जाता है। पर्युषण के अंतिम दिन सभी व्यक्ति एक दूसरे से क्षमा मांगते हैं, यह दिन क्षमा दिवस के नाम से जाना जाता हैं। इस पर्व में दान का विशेष महत्व है। पर्युषण पर्व जैन धर्म के पांच मूल सिद्धांत अहिंसा, हमेशा सत्य की राह पर चलना, कभी चोरी ना करना, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह पर आधारित है।


Next Story