धर्म-अध्यात्म

उत्पन्ना एकादशी के दिन जरूर पढ़नी चाहिए ये व्रत कथा

Subhi
20 Nov 2022 4:57 AM GMT
उत्पन्ना एकादशी के दिन जरूर पढ़नी चाहिए ये व्रत कथा
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हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है और इस दिन व्रत करने का विधान है. अन्य एकादशियों की तरह ही उत्पन्ना एकादशी के दिन भी भगवान विष्णु का पूजा किया जाता है और साथ ही भगवान कृष्ण की पूजा का भी विशेष महत्व है. कहते हैं कि एकादशी का व्रत करने से जातक को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. लेकिन व्रत के दौरान व्रत कथा पढ़ना आवश्यक होता है.

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा

सतयुग में एक चंद्रावती नगरी थी. इस नगर में ब्रह्मवंशज नाड़ी जंग राज किया करते थे. उनका एक पुत्र था, जिसका नाम था मुर. वह बलशाली दैत्य था और उसने अपनी ताकत से देवताओं को परेशान कर रखा था. मुर से परेशान होकर सभी देवता भगवान शंकर के पास पहुंचे. सभी देवता गण ने अपनी व्यथा सुनाई और भगवान शंकर से मदद करने की गुहार लगाई. भगवान शंकर ने कहा कि इस समस्या का हल भगवान विष्णु के पास है. यह सुनकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे.

देवताओं ने अपनी व्यथा सुनाई. सारी कहानी सुनने के बाद भगवान विष्णु ने उन्हें आश्वासन दिया कि मुर की हार जरूर होगी. इसके बाद हजारों वर्षों तक मुर और भगवान विष्णु के बीच युद्ध होता रहा. लेकिन मुर ने हार नहीं मानी.

भगवान विष्णु को युद्ध के बीच में ही निद्रा आने लगी तो वे बद्रीकाश्रम में हेमवती नामक गुफा में शयन के लिए चले गए. उनके पीछे-पीछे मुर भी गुफा में चला गया. भगवान विष्णु को सोते हुए देखकर उन पर वार करने के लिये मुर ने जैसे ही हथियार उठाये श्री हरि से एक सुंदर कन्या प्रकट हुई जिसने मुर के साथ युद्ध किया.

सुंदरी के प्रहार से मुर मूर्छित हो गया, जिसके बाद उसका सर धड़ से अलग कर दिया गया. इस प्रकार मुर का अंत हुआ. जब भगवान विष्णु नींद से जागे तो सुंदरी को देखकर वे हैरान हो गए. जिस दिन वह प्रकट हुई वह दिन मार्गशीर्ष मास की एकादशी का दिन था इसलिये भगवान विष्णु ने इनका नाम एकादशी रखा और उससे वरदान मांगने को कहा.

इस पर एकादशी ने कहा कि हे श्री हरि, आपकी माया अपरंपार है. मैं आपसे यही मांगना चाहती हूं कि एकादशी के दिन जो भी जातक व्रत रखे, उसके समस्त पापों का नाश हो जाए. इस पर भगवान विष्णु ने एकादशी को वरदान दिया कि आज से प्रत्येक मास की एकादशी का जो भी उपवास रखेगा उसके समस्त पापों का नाश होगा और विष्णुलोक में स्थान मिलेगा. भगवान श्री हरि ने कहा कि सभी व्रतों में एकादशी का व्रत मुझे सबसे प्रिय होगा. तब से आज तक एकादशी व्रत किया जाता रहा है.


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