धर्म-अध्यात्म

पूजा के समय इस कथा को सुनने के बाद ही पूर्ण माना जाता है ये व्रत

Shiddhant Shriwas
23 Oct 2021 8:46 AM GMT
पूजा के समय इस कथा को सुनने के बाद ही पूर्ण माना जाता है ये व्रत
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करवाचौथ के बाद अहोई अष्टमी का व्रत संतान की सलामती के लिए रखा जाता है. इस दिन माता पार्वती के अहोई स्वरूप की पूजा की जाती है.

करवाचौथ के बाद अहोई अष्टमी का व्रत आने वाला है. ये व्रत संतान की सलामती और उज्जवल भविष्य की कामना के लिए मांएं रखती हैं. जिन महिलाओं की संतान नहीं है, वे भी संतान प्राप्ति की कामना के साथ इस व्रत को रख सकती हैं. माना जाता है कि सच्चे मन से व्रत करने से अहोई माता प्रसन्न होकर संतान सुख का वरदान देती हैं.

इस बार अहोई अष्टमी का व्रत 28 अक्टूबर गुरुवार को रखा जाएगा. अहोई अष्टमी के व्रत में पार्वती माता के स्वरूप अहोई माता की पूजा की जाती है. दिनभर करवाचौथ की तरह ही निर्जल और निराहार व्रत रखा जाता है. रात को तारों के दर्शन करके और उन्हें अर्घ्य देकर ये व्रत खोला जाता है. पूजा के दौरान स्याहु माला पहनना और व्रत कथा सुनना जरूरी होता है. तभी इस व्रत को पूर्ण माना जाता है.
दूध भात से की जाती है स्याहु की पूजा
स्याहु माला चांदी के दाने और अहोई माता के लॉकेट से बनी होती है. इसे पहनने से पहले इसकी पूजा दूध और भात, अक्षत व पुष्प से की जाती है. इसके बाद इस माला को बच्चे की सलामती की कामना के साथ धारण किया जाता है. स्याहु माला दीपावली के दिन तक पहनना जरूरी होता है. दिवाली के दिन जल भरे करवे के जल को पूरे घर और संतानों पर छिड़का जाता है. इसके बाद इस माला को उतारा जाता है और इस पर जल छिड़ककर इसे सुरक्षित रख लिया जाता है.
ये व्रत कथा पढ़ना या सुनना जरूरी
पूजा के दौरान साहूकार की कथा को पढ़ना या सुनना अनिवार्य बताया गया है. इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक साहूकार के सात बेटे और सात बहुएं थीं. इस साहूकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी. दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं और बेटी मिट्टी लाने जंगल गईं. बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने सात बेटों से साथ रहती थी.
मिट्टी काटते हुए ग़लती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया. स्याहु इस पर क्रोधित होकर बोली कि तुमने मेरे बच्चे को मारा है, अब मैं तुम्हारी कोख बांध दूंगी. स्याहू की बात से डरकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से बचाने की गुहार लगाने लगी और भाभियों से विनती करने लगी कि वे उसकी जगह पर अपनी कोख बंधवा लें. सातों भाभियों में से सबसे छोटी भाभी को अपनी ननद पर तरस आ गया और वो उसने स्याहु से कहा कि आप मेरी कोख बांधकर अपने क्रोध को समाप्त कर सकती हैं.
स्याहु ने उसकी कोख बांध दी. इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे हुए, वे जीवित नहीं बचे. सात दिन बाद उनकी मौत हो जाती थी. इसके बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका उपाय पूछा गया तो पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी. सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और छोटी बहू से पूछती है कि तू किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है. तब छोटी बहू कहती है कि स्याहु माता ने मेरी कोख बांध दी है जिससे मेरे बच्चे नहीं बचते हैं. आप मेरी कोख खुलवा दें तो आपकी बहुत मेहरबानी होगी.
सेवा से प्रसन्न सुरही छोटी बहु को स्याहु माता के पास ले जाती है. वहां जाते समय रास्ते में दोनों थक कर आराम करने लगते हैं. अचानक साहूकार की छोटी बहू देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है. तभी छोटी बहू सांप को मार देती है. इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और अपने बच्चे को जीवित देखकर प्रसन्न होती है. इसके बाद वो छोटी बहू और सुरही को स्याहु माता के पास पहुंचा देती है. वहां जाकर छोटी बहू स्याहु माता की सेवा करती है. इससे प्रसन्न स्याहु माता, उसे सात पुत्र और सात बहुओं से समृद्ध होने का का आशीर्वाद देती हैं और घर जाकर अहोई माता का व्रत रखने के लिए कहती हैं. इसके प्रभाव से छोटी बहू का परिवार पुत्र और बहुओं से भर जाता है.
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