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सनातन धर्म में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा साधना को समर्पित होता है। वही गुरुवार का दिन भगवान विष्णु और देव गुरु बृहस्पति की पूजा आराधना के लिए उत्तम माना जाता है इस दिन भक्त भगवान को प्रसन्न करने के लिए उनकी विधि विधान से पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं।
माना जाता है कि ऐसा करने से देव गुरु बृहस्पति का आशीर्वाद मिलता है लेकिन इसी के साथ ही अगर आज के दिन भक्तजन बृहस्पति कवचम् का सच्चे मन से पाठ करते हैं तो उन पर प्रभु की कृपा शीघ्र देखने को मिलती है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं संपूण्र बृहस्पति कवचम् पाठ।
।। अथ बृहस्पति कवचम् ।।
अस्य श्रीबृहस्पतिकवचस्त्रोत्र मंत्रस्य
ईश्वर ऋषिः अनुष्टुप छन्दः ।
गुरुर्देवता । गं बीजं । श्री शक्तिः ।
क्लीं कीलकम् गुरू प्रीत्यर्थ जपे विनियोगः ॥
अभीष्टफलदं देवं सर्वज्ञं सुरपूजितम् ।
अक्षमालाधरं शांतं प्रणमामि बृहस्पतिम् ॥1 ॥
बृहस्पतिः शिरः पातु ललाटं पातु मे गुरुः ।
कर्णो सुरगुरुः पातु नेत्रे मेSभीषृदायकः ॥2 ॥
जिहवां पातु सुराचार्यो नासां मे वेदपारगः ।
मुखं मे पातु सर्वज्ञो कंठ मे देवतागुरूः ॥ 3 ॥
भुजावांगिरसः पातु करौ पातु शुभप्रदः ।
स्तनौ में पातु वागीशः कुक्षिं मे शुभलक्षणः ॥ 4 ॥
नाभिं देवगुरुः पातु मध्यं पातु सुखप्रदः ।
कटिं पातु जगद्वद्यं ऊरू मे पातु वाक्पतिः ॥ 5 ॥
जानुजंघे सुराचार्यो पादौ विश्वात्मकस्तथा ।
अन्यानि यानि चांगानि रक्षेन्मे सर्वतो गुरू ॥ 6 ॥
इत्येतत्कवचं दिव्यं त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः ।
सर्वान्कामानवाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥ 7 ॥
॥ श्रीब्रह्मयामलोक्तं बृहस्पतिकवचं संपूर्णम् ॥
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Tara Tandi
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