धर्म-अध्यात्म

इस दिन है ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत, जाने कब बन रहा है विशेष संयोग

Subhi
16 Jun 2021 2:56 AM GMT
इस दिन है ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत, जाने कब बन रहा है विशेष संयोग
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प्रत्येक माह में एक बार चन्द्रमा अपनी पूर्ण कला की अवस्था में होता है, इस तिथि को पूर्णिमा कहते हैं। हिंदू धर्म में पूर्णिमा का विशेष स्थान है।

प्रत्येक माह में एक बार चन्द्रमा अपनी पूर्ण कला की अवस्था में होता है, इस तिथि को पूर्णिमा कहते हैं। हिंदू धर्म में पूर्णिमा का विशेष स्थान है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है, इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने तथा व्रत रखने से पुण्य की प्राप्ति होती है

इस वर्ष 24 जून को पड़ रही ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा पर विशेष संयोग बन रहा है। बृहस्पतिवार को पड़ने के कारण इस ज्येष्ठ पूर्णिमा पर भगवान विष्णु की आराधना विशेष फलदायी है। आइए जानते हैं इस वर्ष ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा की तिथि, मुहूर्त एवं विशेष संयोग के बारे में।

ज्येष्ठ पूर्णिमा की तिथि एवं विशेष संयोग
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा 24 जून दिन बृहस्पतिवार या गुरुवार को पड़ रही है। बृहस्पतिवार का दिन विष्णु जी को समर्पित होने के कारण इस वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा विशेष है। इसके अतिरिक्त पूर्णिमा के दिन सूर्य और चंद्रमा, मिथुन एवं वृश्चिक राशि में होंगे, जिस कारण संयोग अतिविशिष्ट हो गया है। पूर्णिमा की तिथि 24 जून को प्रातः 3:32 बजे से शुरू होकर 25 जून को 12:09 बजे रात्रि तक रहेगी। व्रत का विधान 24 जून को है तथा पारण 25 जून को होगा। मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन प्रातः काल में पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। यदि नदियों तक जाना सम्भव न हो, तो घर पर ही नहने के जल में गंगा जल मिलाकर भी नहाया जा सकता है।
व्रत का विधान और महात्म
धर्मशास्त्रों के अनुसार, ज्येष्ठ पूर्णिमा के व्रत का स्थान सात विशेष पूर्णिमाओं में आता है। इस दिन विधिपूर्वक भगवान विष्णु का व्रत एवं पूजन करने तथा रात्रि में चंद्रमा को दूध और शहद मिलाकर अर्घ्य देने से सभी रोग एवं कष्ट दूर हो जाते हैं। इस दिन प्रातः काल स्नान आदि कार्यों से निवृत्त होकर भगवान विष्णु का पूजन करें तथा संकल्प लेकर दिन भर फलाहार करते हुए व्रत रखने का विधान है। व्रत का पारण अगले दिन सामर्थ्यानुसार दान करके करना चाहिए। इस दिन वट पूर्णिमा के व्रत का भी विधान है, ये व्रत विशेषतौर पर गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में रखा जाता है। साथ ही ज्येष्ठ पूर्णिमा पर संत कबीरदास की जयंती भी मनाई जाती है।


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