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इस दिन है प्रदोष व्रत, जानें पूजा विधि और महत्व

Subhi
23 Nov 2021 2:47 AM GMT
इस दिन है प्रदोष व्रत, जानें पूजा विधि और महत्व
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हर महीने की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत मनाया जाता है। इस प्रकार मार्गशीर्ष महीने में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी का प्रदोष व्रत 2 दिसंबर को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान भोलेनाथ और माता-पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है।

हर महीने की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत मनाया जाता है। इस प्रकार मार्गशीर्ष महीने में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी का प्रदोष व्रत 2 दिसंबर को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान भोलेनाथ और माता-पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी दुःख और दर्द दूर हो जाते हैं। मार्गशीर्ष महीने का प्रदोष व्रत गुरुवार को है। इस दिन व्रत करने से शत्रुओं का दमन होता है। अतः शत्रु विजय के लिए प्रदोष व्रत अवश्य करें। आइए, व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत महत्व जानते हैं-

प्रदोष व्रत महत्व
पुराणों में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत को करने से कई ऋषि-मुनियों को भगवद्धाम की प्राप्ति हुई है। स्वंय महर्षि सूतजी ने प्रदोष व्रत के बारे में बताया है। उनकी मानें तो जब पृथ्वी पर अधर्म की प्रधानता हो जाएगी और व्यक्ति इच्छापूर्ति हेतु जघन्य पाप करने लगेगा। तब प्रदोष करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलेगी।
प्रदोष व्रत पूजा मुहूर्त
व्रती भगवान शिव जी एवं माता पार्वती की पूजा-उपासना दिनभर कर सकते हैं। इस दिन त्रयोदशी की तिथि 1 दिसंबर को रात्रि 11 बजकर 35 मिनट से प्रारंभ होगा और 2 दिसंबर को रात्रि में 8 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगी। इसके अलावा, साधक चौघड़िया मुहूर्त में भगवान शिवजी और माता पार्वती की पूजा आराधना कर सकते हैं।
प्रदोष व्रत पूजा विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शिव जी का स्मरण कर दिन की शुरुआत करें। इसके पश्चात, नित्य कर्मों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। तत्पश्चात, आमचन कर अपने आप को शुद्ध करें। फिर स्वच्छ कपड़े धारण करें। इसके बाद सबसे पहले भगवान सूर्य को जल का अर्घ्य दें। तत्पश्चात, भगवान शिव जी एवं माता पार्वती की पूजा शिव चालीसा का पाठ, मंत्रों का जाप कर फल, फूल, धूप, दीप, अक्षत, भांग, धतूरा, दूध, दही और पंचामृत से करें। अंत में आरती अर्चना कर भगवान शिव और माता पार्वती से अन्न, जल और धन की कामना करें। दिनभर उपवास रखें। शाम में आरती अर्चना करें। फिर फलाहार करें। अगले दिन पूजा-पाठ संपन्न कर व्रत खोलें।

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