धर्म-अध्यात्म

इस दिन है पापमोचिनी एकादशी, इस विधि से करें भगवान विष्णु की पूजा

Apurva Srivastav
5 April 2021 7:50 AM GMT
इस दिन है पापमोचिनी एकादशी, इस विधि से करें भगवान विष्णु की पूजा
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चैत्र मास की एकादशी का हिंदू धर्म में बेहद खास माना जाता है। इसे पापमोचिनी एकादशी कहते हैं।

चैत्र मास की एकादशी का हिंदू धर्म में बेहद खास माना जाता है। इसे पापमोचिनी एकादशी कहते हैं। मान्यता है कि पापमोचिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से भक्त के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस साल पापमोचिनी एकादशी 07 अप्रैल दिन बुधवार को है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है, ऐसे में इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है।

पापमोचिनी एकादशी महत्व- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पापमोचिनी एकादशी का महत्व खुद भगवान श्रीकृ्ष्ण ने अर्जुन को बताया था। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति इस व्रत को रखता है, उसके समस्त पाप खत्म हो जाते हैं और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि एकादशी व्रत को विधि-विधान से रखने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पापमोचनी एकादशी के दिन बन रहे ये शुभ मुहूर्त-
ब्रह्म मुहूर्त- 04:21 ए एम, अप्रैल 08 से 05:07 ए एम, अप्रैल 08 तक।
विजय मुहूर्त- 02:17 पी एम से 03:07 पी एम तक।
गोधूलि मुहूर्त- 06:16 पी एम से 06:40 पी एम तक।
अमृत काल- 04:44 पी एम से 06:24 पी एम तक।
निशिता मुहूर्त 11:48 पी एम से 12:33 ए एम, अप्रैल 08 तक।
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पापमोचनी एकादशी व्रत मुहूर्त-
पापमोचनी एकादशी व्रत पारणा मुहूर्त- 01:39 PM से 04:11 PM (8 अप्रैल)
पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय- 08:40 AM
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पापमोचिनी एकादशी पूजा विधि-
-एकादशी के दिन सबसे पहले सुबह उठकर स्‍नान करने के बाद साफ वस्‍त्र धारण करके एकादशी व्रत का संकल्‍प लें।
- उसके बाद घर के मंदिर में पूजा करने से पहले एक वेदी बनाकर उस पर 7 धान (उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा) रखें।
- वेदी के ऊपर एक कलश की स्‍थापना करें और उसमें आम या अशोक के 5 पत्ते लगाएं।
- अब वेदी पर भगवान विष्‍णु की मूर्ति या तस्‍वीर रखें।
- इसके बाद भगवान विष्‍णु को पीले फूल, ऋतुफल और तुलसी दल समर्पित करें।
- फिर धूप-दीप से विष्‍णु की आरती उतारें।
- शाम के समय भगवान विष्‍णु की आरती उतारने के बाद फलाहार ग्रहण करें।
- रात्रि के समय सोए नहीं बल्‍कि भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें।
- अगले दिन सुबह किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथा-शक्ति दान-दक्षिणा देकर विदा करें।
- इसके बाद खुद भी भोजन कर व्रत का पारण करें।


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