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हिंदी पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष महीने में शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। इस प्रकार 14 दिसंबर को गीता जयंती है। सनातन धार्मिक ग्रंथों एवं पुराणों में वर्णित है
हिंदी पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष महीने में शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती मनाई जाती है। इस प्रकार 14 दिसंबर को गीता जयंती है। सनातन धार्मिक ग्रंथों एवं पुराणों में वर्णित है कि भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के दौरान कुरुक्षेत्र में परम मित्र अर्जुन को गीता उपदेश दिया था। इसके लिए गीता जयंती का विशेष महत्व है। खासकर मार्गशीर्ष यानी अगहन का महीना बेहद शुभ होता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता उपदेश के दौरान कहा था कि "मैं महीनों में अगहन का महीना हूं"। आइए, गीता जयंती की तिथि, मुहूर्त और महत्व के बारे में जानते हैं-
महत्व
सनातन धर्म में गीता को पवित्र ग्रंथ माना गया है। इस ग्रंथ के रचनाकार वेदव्यास जी हैं। इन्होंने ही वेदों की रचना की है। सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण जी ने अपने शिष्य अर्जुन को गीता ज्ञान दिया था। इस ग्रंथ में 18 अध्याय हैं। इनमें व्यक्ति जीवन का संपूर्ण सार बताया गया है। साथ ही धार्मिक, कार्मिक, सांस्कृतिक और व्यहवाहरिक ज्ञान भी दिया गया है। इस ग्रंथ के अध्ययन और अनुसरण कर व्यक्ति की दिशा और दशा दोनों बदल सकती है। साथ ही व्यक्ति को मरणोपरांत भगवत धाम की प्राप्ति होती है।
गीता जयंती की तिथि
मार्गशीर्ष महीने में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 13 दिसंबर को रात्रि 9 बजकर 32 मिनट पर होगी और अगले दिन यानी 14 दिसंबर को रात्रि 11 बजकर 35 मिनट पर समाप्त होगी। साधक 14 दिसंबर को दिनभर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा उपासना कर सकते हैं।
गीता जयंती की पूजा विधि
इस दिन मोक्षदा एकादशी भी है। अतः साधक एकादशी व्रत भी रख सकते हैं। इसके लिए दशमी यानी 13 दिसंबर से तामसिक भोजन का त्याग करें। ब्रह्मचर्य नियम का पालन करें। गीता जयंती के दिन ब्रह्म बेला में उठें और भगवान श्रीविष्णु का ध्यान और स्मरण कर दिन की शुरुआत करें। इसके पश्चात नित्य कर्म से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान ध्यान करें। फिर ॐ गंगे का मंत्रोउच्चारण कर आमचन करें। अब स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा पीले फल, पुष्प, धूप-दीप, दूर्वा आदि चीजों से करें। साधक के पास पर्याप्त समय है, तो गीता पाठ जरूर करें। अंत में आरती अर्चना कर पूजा संपन्न करें। दिनभर उपवास रखें। अगर जरुरत महसूस हो, तो एक बार जल और एक फल का ग्रहण कर सकते हैं। संध्याकाल में आरती अर्चना और प्रार्थना के पश्चात फलाहार करें।
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