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मां पार्वती के अत्यंत उग्र रूप को धूमावती के नाम से जाना जाता है। इनके अवतरण दिवस को धूमावती जयंती के रूप में मनाया जाता है।
मां पार्वती के अत्यंत उग्र रूप को धूमावती के नाम से जाना जाता है। इनके अवतरण दिवस को धूमावती जयंती के रूप में मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को यह जंयती मनाई जाती है, इस वर्ष जो 18 जून को है। इस दिन 10 महाविद्या का पूजन किया जाता है। मां धूमावती को विधवा स्वरूप माना गया है। इनका वाहन कौवा है। श्वेत वस्त्र धारण कर माता खुले केश रखती हैं। माता की पूजा गुप्त नवरात्रि में भी की जाती है। मां धूमावती की प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए क्योंकि इनकी कृपा से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है। इसके अलावा दुःखों आदि से भी छूटकारा प्राप्त होता है।
धूमावती मंत्र
धूमावती जयंती पर रुद्राक्ष माला से 108, 51 या 21 बार इन मंत्रों का जाप करें।
ॐ धूं धूं धूमावत्यै फट्॥
धूं धूं धूमावती ठः ठः ॥
धूमावती माता की उत्पत्ति कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती को बहुत तेज भूख लगी थी। इस दौरान कैलाश पर्वत पर खाने-पीने को कुछ भी नहीं था। उन्होंने भगवान शिव से भोजन मांगा, पंरतु उस समय भोलेनाथ समाधि में थे। भूख से व्याकुल मां ने बार-बार खाने की मांग की, पंरतु समाधि अवस्था में होने के कारण महादेव ने जवाब नहीं दिया। बढ़ती भूख की वजह से बैचेन होकर माता पार्वती ने भगवान शिव को ही निगल गईं। शिव के गले में विष होने से पार्वती जी का शरीर काला पड़ने लगा। जहर का प्रभाव इतना भयंकर हुआ कि वो कुरूप दिखने लगीं, जिसके बाद भगवान शिव ने कहा कि आपके इस स्वरूप को धूमावती के नाम से पुकारा जाएगा। पति को निगलने के कारण उन्हें एक विधवा के रूप में पूजा जाता है। माता पार्वती का यह रूप बहुत ही कुरूप और क्रूर दिखाई पड़ता है। तभी से माता के विधवा स्वरूप (श्वेत वस्त्र और खुले केश) को पूजा जाता हैं।
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