धर्म-अध्यात्म

इस दिन है भादप्रद का शनि प्रदोष व्रत, जानिए महत्व, शुभ मुहूर्त और व्रत पूजा विधि

Nidhi Markaam
12 Jun 2022 7:00 AM GMT
इस दिन है भादप्रद का शनि प्रदोष व्रत, जानिए महत्व, शुभ मुहूर्त और व्रत पूजा विधि
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हिंदी पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह के दोनों पक्षों, शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदी पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह के दोनों पक्षों, शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। इस बार शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 18 सितंबर को पड़ रही है। प्रदोष व्रत का फल और नाम उसके वार के अनुसार होता है। इस बार प्रदोष व्रत शनिवार को पड़ रहा है, इसलिए यह शनिप्रदोष व्रत कहलाएगा। इस दिन विधिवत व्रत और पूजन करने से भगवान शिव के साथ शनिदेव की कृपा भी प्राप्त होती है। इस भगवान शिव की पूजा करने के साथ शनिदेव की पूजा अर्चना भी करनी चाहिए। इससे आपके जीवन में आने वाली समस्याओं से मुक्ति प्राप्तो होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। तो आइए जानते हैं शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि और लाभ...

शनि प्रदोष व्रत का महत्व

प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। आपके घर में सुख समृद्धि आती है और जीवन की समस्याएं दूर होती हैं। इसी के साथ शनिदेव की कृपा भी प्राप्त होती है। शनिदेव की कृपा से जीवन में तरक्की प्राप्त होती है और आपकी नौकरी, व्यापार और आर्थिक स्थिति में उन्नति होती है। मान्यता है कि नियम पूर्वक प्रत्येक प्रदोष करने से जातक के सभी कष्ट दूर होते हैं और इस जीवन के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।

शनि प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त-

भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि आरंभ- 18 सितंबर 2021 दिन शनिवार को सुबह 06 बजकर 54 मिनट से

भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि समाप्त- 19 सितंबर 2021 दिन रविवार को सुबह 05 बजकर 59 मिनट पर

पूजा का शुभ मुहूर्त- शाम को 06 बजकर 23 मिनट से रात 08 बजकर 44 मिनट तक प्रदोष व्रत की पूजा की जा सकती है।

पूजा का कुल समय- 02 घंटे 21 मिनट

शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि

प्रदोष व्रत का पूजन प्रदोष काल यानि सूर्यास्त के लगभग पौने घंटे यानी 45 मिनट पहले आरंभ कर दिया जाता है।

त्रयोदशी तिथि को प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

इसके बाद भगवान शिव के सामने धूप दीप प्रज्वलित करें।

संध्या के समय शुभ मुहूर्त में पूजा के स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें।

अब बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें।

पूजन के दौरान भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र नमः शिवाय का जाप करते रहें।

पूजन पूर्ण होने के बाद शिव चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं इससे शिव जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए उनके समक्ष या पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक प्रज्वलित करें।



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