धर्म-अध्यात्म

सुख की शत्रु हैं ये आदतें, इन्हें बदलने के बाद मिलती हैं खुशियां

Tara Tandi
26 Aug 2021 7:56 AM GMT
सुख की शत्रु हैं ये आदतें, इन्हें बदलने के बाद मिलती हैं खुशियां
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गरुड़ पुराण सिर्फ जीवन और मृत्यु के तमाम रहस्यों को ही उजागर नहीं करता

गरुड़ पुराण सिर्फ जीवन और मृत्यु के तमाम रहस्यों को ही उजागर नहीं करता, बल्कि लाइफ मैनेजमेंट को लेकर भी काफी कुछ कहता है. मान्यता है कि गरुड़ पुराण में लिखी हर बात भगवान विष्णु और उनके वाहन गरुड़ की वार्तालाप का संग्रह है. यदि इसकी बातों को व्यक्ति अपने जीवन में उतार ले, तो न सिर्फ अपना वर्तमान जीवन सुधार सकता है, बल्कि मृत्यु के बाद भी मोक्ष की राह की ओर अग्रसर हो सकता है. यहां जानिए गरुड़ पुराण में बताई गईं उन आदतों के बारे में जो इंसान के सुख की शत्रु मानी जाती हैं. इन्हें त्यागने के बाद भी व्यक्ति जीवन में आनंद और खुशियों को प्राप्त कर सकता है.

1. संसार में ऐसे तमाम उदाहरण हैं जो ये बताते हैं कि जिसने भी घमंड किया, उसका नाश हो गया. इसलिए कभी खुद में अहंकार न आने दें. जो लोग अंहकार से ग्रसित होते हैं, वे दूसरों को तुच्छ दिखाने का प्रयास करते हैं. इससे दूसरों को कष्ट पहुंचता है और वे दुखी होते हैं. इसे महापाप माना गया है. इसलिए घमंड को कभी हावी न होने दें और विनम्रतापूर्ण व्यवहार करें.

2. ईर्ष्या से भी व्यक्ति स्वयं का नाश करता है क्योंकि ऐसा व्यक्ति दूसरों की खुशियों से जलता है और स्वयं के बहुमूल्य समय को दूसरे को नुकसान पहुंचाने के लिए इस्तेमाल करता है. इसलिए यदि आप ईर्ष्या करेंगे तो खुद ही परेशान होंगे और जीवन में कभी खुशियों का आनंद नहीं ले पाएंगे.

3. जब हम मेहनत करके धन कमाते हैं, तो ही हमें खुशी मिलती है. लेकिन अगर आप दूसरों के धन का लालच करेंगे और उसके धन को हड़पने का प्रयास करेंगे, तो आपके जीवन में कभी खुशियां नहीं आ सकतीं. आप चाहे कितना ही धन जुटा लें, लेकिन आपको जीवन में सुकून नहीं मिल सकता.

4. दूसरों की बुराई करके आप अपने ही अंदर नकारात्मकता लेकर आते हैं. साथ ही ऐसे लोगों को खुद भी कई तरह की बुराइयां झेलनी पड़ती हैं. ये आदत कभी आपका भला नहीं कर सकती. इसे बहुत बड़ा पाप माना गया है. ऐसे लोग इधर उधर की बातों में ही अपना समय गवां देते हैं और काफी पीछे रह जाते हैं. अगर आपको वाकई सफल होना है तो आपको दूसरों की बुराई से बचना चाहिए.

(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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