धर्म-अध्यात्म

खली पेट न भोजन होता है न भजन

Tara Tandi
27 Feb 2021 6:20 AM GMT
खली पेट न भोजन होता है न भजन
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एक बार एक भिखारी सेठ के घर के बाहर खड़ा होकर काफी देर से भजन गा रहा था.

जनता से रिश्ता बेवङेस्क | एक बार एक भिखारी सेठ के घर के बाहर खड़ा होकर काफी देर से भजन गा रहा था. वो भजन के बदल सिर्फ रोटी चाहता था, ताकि परिवार का भरण पोषण कर सके. सेठानी काफी देर से हाथ में रोटी लेकर खड़ी थी और अंदर से आवाज लगा रही थी कि आ रही हूं, अभी रुके रहना.

सेठ ये सब देख रहे थे, लेकिन समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर सेठानी की मंशा क्या है. ये उसको दिलासा भी दे रही है और जा भी नहीं रही है. आखिकार उनसे रहा नहीं गया और सेठ ने सेठानी से पूछा कि रोटी हाथ में लेकर खड़ी हो, वो बाहर मांग रहा है, उसे कह रही हो आ रही हूं तो उसे रोटी क्यूं नहीं दे रही हो.

तब सेठानी बोली, हां रोटी दूंगी, पर क्या है न, मुझे उसका भजन बहुत प्यारा लग रहा है. अगर उसको रोटी दे दूंगी तो वो चला जाएगा. लेकिन मुझे उसका भजन सुनना है. भजन खत्म होने के बाद ये रोटी उसे दे दूंगी.

ऐसा ही कभी-कभी हम सब के साथ भी होता है. यदि प्रार्थना के बाद भी भगवान आपकी नहीं सुन रहे हैं, तो समझना की उस सेठानी की तरह प्रभु को आपकी प्रार्थना प्यारी लग रही है. इसलिए प्रतीक्षा करो और प्रार्थना करते रहो.

जीवन मे कैसा भी दुःख और कष्ट आए पर भक्ति मत छोड़िए. क्या कष्ट आता है तो आप भोजन करना छोड़ देते हैं? क्या बीमारी आती है तो आप सांस लेना छोड देते हैं? नही न ! फिर जरा सी परेशानी आने पर आप भक्ति करना क्यों छोड़ देते हैं.

सही तरीके से जीवनयापन के लिए भजन और भोजन दोनों की जरूरत है. भोजन छोड़ दोगे तो जिंदा नहीं रहोगे और भजन छोड़ दोगे तो कहीं के नहीं रहोगे.

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