धर्म-अध्यात्म

शिव पुराण में है काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का उल्‍लेख. काशी नगरी की स्‍वयं रक्षा करते हैं महादेव

Tulsi Rao
28 Feb 2022 3:48 AM GMT
शिव पुराण में है काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का उल्‍लेख. काशी नगरी की स्‍वयं रक्षा करते हैं महादेव
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जिसके एक बार भी दर्शन कर लेने से व्‍यक्ति को दोबारा जन्‍म नहीं लेना पड़ता है. यह मंदिर मोक्ष दिलाने वाला है. यह खास मंदिर है काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। 1 मार्च 2022 को महाशिवरात्रि मनाई जाएगी. इस दिन देश के तमाम शिव मंदिरों में भक्‍तों की भारी भीड़ रहती है. खासतौर पर ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने के लिए तो शिव भक्‍तों का सैलाब उमड़ पड़ता है. महाशिवरात्रि के मौके पर आज हम एक ऐसे शिव मंदिर की बात करते हैं, जिसके एक बार भी दर्शन कर लेने से व्‍यक्ति को दोबारा जन्‍म नहीं लेना पड़ता है. यह मंदिर मोक्ष दिलाने वाला है. यह खास मंदिर है काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग.

संसार के नष्‍ट होने पर भी बचा रहेगा ये मंदिर
बनारस/काशी में स्थित काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग को लेकर शिवपुराण में उल्‍लेख है कि जब प्रलयकाल में पूरे संसार का नाश हो जाता है, उस समय भी काशी नगर अपने स्थान पर ही रहता है. प्रलय आने पर भगवान शंकर इस नगर को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं. यानी कि भगवान शिव खुद इस नगर की रक्षा करते हैं. इसके अलावा धर्म ग्रंथों में यह भी उल्‍लेख है कि काशी में प्राण त्याग वाले व्‍यक्ति को जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है.
विवाह के बाद यहीं रहे थे शिव-पार्वती
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग को लेकर पुराणों में कहा गया है कि भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह होने के बाद भी माता पार्वती अपने पिता के घर पर ही रहती हैं. एक बार उन्‍होंने अपने पति शिव जी से कहा कि वे उन्‍हें अपने साथ ले जाएं. इसके बाद भगवान शिव माता पार्वती को लेकर इसी पवित्र नगरी काशी में लाए थे और यहां आकर वो विश्वनाथ-ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए. इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही व्‍यक्ति के सारे पाप नष्‍ट हो जाते हैं.
मंदिर के शिखर पर लगा है 22 टन सोना
इस मंदिर का महत्‍व जितना बड़ा है, वैसी ही इसकी भव्‍यता भी कमाल की है. इस मंदिर का शिखर 51 फीट ऊंचा है और इस पर इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1777 में पांच पंडप बनवाए थे. बाद में 1853 में पंजाब के राजा रणजीत सिंह ने मंदिर के शिखरों को 22 टन सोने से स्वर्णमंडित करवाया था.


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