धर्म-अध्यात्म

करवा चौथ पर पूजा के दौरान कथा पढ़ने का है विधान

Shiddhant Shriwas
2 Oct 2021 2:26 AM GMT
करवा चौथ पर पूजा के दौरान कथा पढ़ने का है विधान
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प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। इस बार करवचौथ का व्रत 24 अक्टूबर 2021 दिन रविवार को रखा जाएगा

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। इस बार करवचौथ का व्रत 24 अक्टूबर 2021 दिन रविवार को रखा जाएगा। सुहागिन स्त्रियों के लिए यह व्रत बहुत मायने रखता है। ये व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना के लिए रखती हैं। करवाचौथ पर महिलाएं प्रातः से ही निर्जला उपवास करती हैं और रात्रि में चंद्रमा दर्शन करके अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण करती हैं। इस दिन करवाचौथ की कथा पढ़ने का भी विधान है। तो चलिए जानते हैं करवा चौथ की पौराणिक कथा।

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय एक साहूकार के सात बेटे और एक पुत्री थी जिसका नाम वीरावती था। सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। जब वीरावती का विवाह हुआ तो ,उस समय अपनी ससुराल से मायके आई हुई थी। अपनी सभी भाभियों के साथ वीरावती ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। पूरे दिन निर्जल उपवास के कारण वीरावती अत्यधिक व्याकुल हो गई। सभी को भाईयों उनकी बहन की व्याकुल देखी नहीं गई। सभी भाई जब खाना खाने बैठे तो अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने कहा कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भोजन या जल ग्रहण नहीं कर सकती।

सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती है और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो। इसके बाद भाई अपनी बहन को कहता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है।

जैसे ही वीरावती पहला कौर मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरे कौर में बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा कौर मुंह में डालने जाती है तब तक ससुराल से उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे आ जाता है। यह दुखद समाचार सुनकर वारीबती सुध-बुध खो देती है,और विलाप करने लगती है। जब वीरावती अपने पति की मृत्यु पर विलाप कर रही होती है कि तभी संयोग से इंद्राणी वहां आती हैं और उसे सारी सच्चाई से अवगत करवाती हैं। इसके बाद इंद्राणी कहती हैं कि तुमने बिना चंद्रमा को अर्घ्य दिए व्रत तोड़ लिया इसी कारण तुम्हारे पति की मृत्यु हुई है। जिसके बाद वीरावती अपने पति को जीवित करे का निश्चय करती हैं और इंद्राणी से इसका उपाय पूछती हैं।

इंद्राणी कहती हैं कि तुम्हें पूरे बारह मास तक प्रत्येक चौथ का व्रत रखना होगा और अगले वर्ष करवा चौथ पर पुनः व्रत रखना होगा। इसके बाद वीरावती वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है। अगले वर्ष एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है। इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है।

सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है। अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से वीरवती को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।

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