- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- धर्म-अध्यात्म
- /
- कांवड़ यात्रा निकालने...
धर्म-अध्यात्म
कांवड़ यात्रा निकालने के नियम होतें हैं, जाने इसके नियम व महत्त्व
Bhumika Sahu
16 July 2021 3:36 AM GMT
x
सदियों से चली आ रही कांवड़ यात्रा की परंपरा. हालांकि इस साल 2021 में उत्तराखंड और ओडिशा सरकार ने कोरोना को देखते हुए कांवड़ यात्रा पर रोक लगा दी है. यूपी में ये 25 जुलाई से प्रस्तावित है, जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में 16 जुलाई को सुनवाई होनी है. यहां जानिए इसका इतिहास, इसके प्रकार और नियम.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। महादेव का प्रिय श्रावण मास आने वाला है. 25 जुलाई से सावन की शुरुआत हो रही है. सावन के दिनों में तमाम शिव भक्त कांवड़ लेकर गंगाजल लेने जाते हैं और लंबी यात्रा तय करके उस जल से भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं. कांवड़ की प्रथा सदियों से चली आ रही है. हालांकि इस साल कांवड़ यात्रा को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है.
उत्तराखंड और ओडिशा में कांवड़ यात्रा पर रोक लग चुकी है, लेकिन यूपी सरकार ने राज्य में सशर्त इसकी अनुमति दे दी है. 25 जुलाई से यूपी में कांवड़ यात्रा प्रस्तावित है. हालांकि देश में कोरोना महामारी का कहर देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को नोटिस जारी करके ऐसा करने की वजह पूछी है. आज 16 जुलाई को इस मामले में सुनवाई होनी है. यहां जानिए सदियों से चली आ रही इस कांवड़ यात्रा का इतिहास, ये कितनी तरह की होती है और इसके नियम के बारे में.
ये है कांवड़ का इतिहास
कांवड़ यात्रा का इतिहास परशुराम भगवान के समय से जुड़ा हुआ है. परशुराम शिव जी के परम भक्त थे. मान्यता है कि एक बार वे कांवड़ लेकर यूपी के बागपत जिले के पास 'पुरा महादेव' गए थे. उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जल लेकर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था. उस समय श्रावण मास चल रहा था. तब से श्रावण के महीने में कांवड़ यात्रा निकालने की परंपरा शुरू हो गई और यूपी, उत्तराखंड समेत तमाम राज्यों में शिव भक्त बड़े स्तर पर हर साल सावन के दिनों में कांवड़ यात्रा निकालते हैं.
जानिए कितनी तरह की होती है कांवड़ यात्रा
परशुराम भगवान के समय में शुरू हुई कांवड़ यात्रा पैदल ही निकाली जाती थी, लेकिन समय और सहूलियत के अनुसार आगे चलकर कांवड़ यात्रा के कई प्रकार और नियम कायदे बन गए. फिलहाल तीन तरह की कांवड़ यात्रा निकालने का चलन है.
1. खड़ी कांवड़
खड़ी कांवड़ यात्रा में भक्त कंधे पर कांवड़ लेकर पैदल यात्रा करते हुए गंगाजल लेने जाते हैं. ये सबसे कठिन यात्रा होती है क्योंकि इसके नियम काफी कठिन होते हैं. इस कांवड़ को न तो जमीन पर रखा जाता है और न ही कहीं टांगा जाता है. यदि कांवड़िये को भोजन करना है या आराम करना है तो वो कांवड़ को या तो स्टैंड में रखेगा या फिर किसी अन्य कांवड़िए को पकड़ा देगा.
2. झांकी वाली कांवड़ यात्रा
समय के अनुसार आजकल लोग झांकी वाली कांवड़ यात्रा भी निकालने लगे हैं. इस यात्रा के दौरान कांवड़िए झांकी लगाकर चलते हैं. वे किसी ट्रक, जीप या खुली गाड़़ी में शिव प्रतिमा रखकर भजन चलाते हुए कांवड़ लेकर जाते हैं. इस दौरान शिव भक्त भगवान शिव की प्रतिमा का श्रंगार करते हैं और गानों पर थिरकते हुए कांवड़ यात्रा निकालते हैं.
3. डाक कांवड़
डाक कांवड़ वैसे तो झांकी वाली कांवड़ जैसी ही होती है. इसमें भी किसी गाड़ी में भोलेनाथ की प्रतिमा को सजाकर रखा जाता है और भक्त शिव भजनों पर झूमते हुए जाते हैं. लेकिन जब मंदिर से दूरी 36 घंटे या 24 घंटे की रह जाती है तो कांवड़िए कांवड़ में जल लेकर दौड़ते हैं. ऐसे में दौड़ते हुए कांवड़ लेकर जाना काफी मुश्किल होता है. इसके लिए कांवड़िए पहले से संकल्प करते हैं.
Bhumika Sahu
Next Story