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जिस तरह प्रातः सूर्योदय से पहले उठ कर ईश्वर आराधना करना आवश्यक है, उसी तरह संध्या वंदन भी जरूरी है
जिस तरह प्रातः सूर्योदय से पहले उठ कर ईश्वर आराधना करना आवश्यक है, उसी तरह संध्या वंदन भी जरूरी है. इसका महत्व किसी भी तरह से कम नहीं है. सूर्यास्त के बाद संधि काल में संध्या वंदन बताया गया है. इस समय घर में दीया बाती करने की बात कही गई है. इसका अर्थ लोगों ने सिर्फ यह निकाला कि शाम के समय घर के अंदर बने पूजा घऱ में भगवान के सामने दीया जलाकर हाथ जोड़ लिया जाए, कुछ घरों में शाम के समय तुलसी जी के पौधे पर दीया जलाकर रखने की परम्परा भी चली आ रही है. कुछ घरों में तो संध्या समय यानी गोधूलि वेला में भी भगवान की आरती और भोग लगाने का नियम है. ऐसे घरों में सुख समृद्धि बनी रहती है. संध्या-काल की व्याख्या सूर्य और तारों से रहित दिन-रात की संधि को तत्त्वदर्शी मुनियों ने की है.
अहोरात्रस्य या संधिः सूर्यनक्षत्रवर्जिता ।
सा तु संध्या समाख्याता मुनिभिस्तत्त्वदर्शिभिः ।।
दीया बाती के अर्थ को समझना है जरूरी
दीया का अर्थ है प्रकाश यानी उजाला, दीया जलाते ही अंधकार भाग जाता है और जहां पर दीया जलाया जाता है वहां पर प्रकाश फैल जाता है. इसको एनर्जी के रूप में समझें तो निगेटिव एनर्जी हट जाती है और पॉजिटिव एनर्जी आती है. घर में निगेटिव एनर्जी रहने से परिवार के सभी सदस्यों पर नकारात्मक, अवसाद, बीमारी. आलस्य का कम अथवा अधिक प्रभाव रहता है. जब दीया जलाने से घर प्रकाशवान होता है तो वहां की निगेटिविटी स्वाभाविक रूप से बाहर निकल जाती है और पॉजिटिव एनर्जी आती है जो परिवार के सभी सदस्यों को ऊर्जावान, सकारात्मक विचारवान और आरोग्य वाला बनाती है.
TagsSandhya Vandana
Ritisha Jaiswal
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