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धर्म-अध्यात्म
24 घंटे में होते हैं 30 मुहूर्त, सबके मालिक अलग, मुहूर्त देखकर करें काम
Bhumika Sahu
30 Jun 2022 10:27 AM GMT
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24 घंटे में होते हैं 30 मुहूर्त
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू सनातनी प्रत्येक कार्य को करने से पूर्व पंचांग विचार करके शुभ मुहूर्त निकलवाते हैं। ये मुहूर्त आखिर होता क्या है और क्यों इसको इतना अधिक महत्व दिया जाता है। पंचांगीय गणना को देखें तो दिन और रात्रि में मिलाकर कुल 30 मुहूर्त होते हैं। 15 मुहूर्त दिन में और 15 रात्रि में। इनमें नक्षत्रों के आधार पर मुहूर्तो के स्वामी निश्चित किए गए हैं। जिन नक्षत्रों के स्वामी शुभ होते हैं उनमें कार्य करने से सफलता मिलती है, लेकिन जिन नक्षत्रों के स्वामी क्रूर, अशुभ होते हैं उनमें किए गए कार्यो का विपरीत परिणाम प्राप्त होता है।
ज्योतिष सिद्धांत के अनुसान 1 अहोरात्र अर्थात् दिन-रात में मिलाकर कुल 30 मुहूर्त होते हैं। 1 अहोरात्र में कुल 60 घटी होती है। दिन की 30 घटी और रात की 30 घटी। एक घटी 24 मिनट की होती है। दिन में 15 मुहूर्त और रात्रि में 15 मुहूर्त होते हैं। इस प्रकार एक मुहूर्त का मान 48 मिनट को होता है। एक मुहूर्त 48 मिनट का तो दिन के 15 मुहूर्त कुल 720 मिनट के होते हैं। इन्हें घंटे में परिवर्तित करने के लिए 60 से विभाजित करेंगे तो 12 घंटे का समयमान मिल जाता है। इस प्रकार एक मुहूर्त का मान 48 मिनट होता है। 48-48 मिनट के 15 मुहूर्त दिन में और 15 रात्रि में होते हैं। इन 30 मुहूर्तो के अलग-अलग स्वामी निश्चित किए गए हैं।
दिन के 15 मुहूर्तो के स्वामी
दिन में पहले मुहूर्त का नक्षत्र आद्र्रा स्वामी गिरीश, दूसरे का नक्षत्र आश्लेषा स्वामी सर्प, तीसरे का नक्षत्र अनुराधा स्वामी मित्र, चौथे का नक्षत्र मघा स्वामी पितृगण, पांचवें का नक्षत्र धनिष्ठा स्वामी वसु, छठे का नक्षत्र पूर्वाषाढ़ा स्वामी जल, सातवें का नक्षत्र उत्तराषाढ़ा स्वामी विश्वेदेव, आठवें का नक्षत्र अभिजित स्वामी ब्रह्मा, नवें का नक्षत्र रोहिणी स्वामी ब्रह्मा, दसवें का नक्षत्र ज्येष्ठा स्वामी इंद्र, ग्यारहवें का नक्षत्र विशाखा स्वामी इंद्राग्नि, बारहवें का नक्षत्र मूल स्वामी निर्ऋति, तेरहवें का नक्षत्र शतभिषा स्वामी वरुण, चौदहवें का नक्षत्र उत्तराफाल्गुनी स्वामी अर्यमा, पंद्रहवें का नक्षत्र पूर्वा फाल्गुनी स्वामी भग।
रात्रि के 15 मुहूर्तो के स्वामी
रात्रि के पहले मुहूर्त का नक्षत्र आद्र्रा स्वामी शिव, दूसरे का पूर्वाभाद्रपद स्वामी अजपाद, तीसरे का उत्तराभाद्रपद स्वामी अहिर्बुध्न्य, चौथे का नक्षत्र रेवती स्वामी पूषा, पांचवें का नक्षत्र अश्विनी स्वामी अश्विनी कुमार, छठे का नक्षत्र भरणी स्वामी यम, सातवें का नक्षत्र कृतिका स्वामी अग्नि, आठवें का नक्षत्र रोहिणी स्वामी ब्रह्मा, नवें का नक्षत्र मृगशिरा स्वामी चंद्र, दसवें का नक्षत्र पुनर्वसु स्वामी अदिति, ग्यारहवें का नक्षत्र पुष्य स्वामी जीव, बारहवें का नक्षत्र श्रवण स्वामी विष्णु, तेरहवें का नक्षत्र हस्त स्वामी अर्क, चौदहवें का नक्षत्र चित्रा स्वामी त्वाष्ट्र, पंद्रहवें का नक्षत्र स्वाति स्वामी मरुत।
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