धर्म-अध्यात्म

आसनसोल के बर्नपुर स्थित धेनुआ गांव में संपन्न हुई महामाया दुर्गा की पूजा.

Tara Tandi
6 Oct 2021 8:51 AM GMT
आसनसोल के बर्नपुर स्थित धेनुआ गांव में संपन्न हुई महामाया दुर्गा की पूजा.
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आम तौर पर नवरात्रि ( Navratri) में मां दुर्गा (Durga Puja) के नौ स्वरूपों की पूजा नौ दिन में होती है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आम तौर पर नवरात्रि ( Navratri) में मां दुर्गा (Durga Puja) के नौ स्वरूपों की पूजा नौ दिन में होती है, लेकिन पश्चिम बंगाल के आसनसोल के बर्नपुर स्थित धेनुआ गांव में स्थित काली कृष्ण योगाश्रम एक दिन में ही अनोखी दुर्गापूजा ( One Day Durga Puja ) संपन्न होती है. महालया के दिन मां दुर्गा का पूजन होता है और एक दिन में ही घट का विसर्जन कर दिया जाता है. इस दुर्गापूजा को महामाया दुर्गापूजा के नाम से भी जाना जाता है. प्राप्त जानकारी के अनुसार यहां षष्ठी से लेकर दशमी तक की पूजा एक घंटे में होती है. बीते 48 वर्षों से इस अनोखे दुर्गापूजा का आयोजन किया जा रहा है. प्रत्येक वर्ष महालया के दिन यानि की श्राद्ध पक्ष के समापन पर यह पूजा आयोजित होती है.

इस साल भी कोरोना संकट के बीच यह अनोखी दुर्गापूजा आयोजित हुई. कोरोना महामारी को देखते हुए इस बार नियमों का पालन कर पूजा हुई. ऐसी अनोखी एक दिवसीय पूजा एक मात्र असम और दूसरा पश्चिम बंगाल के पश्चिम व‌र्द्धमान जिले के धेनुआ गांव में होती है. इस पूजा को लेकर लोगों में काफी उत्साह रहता है और लोग पूरी आस्था से पूजा में शामिल होते हैं.

एक घंटे में होता है षष्टी से दशमी तक का मंत्रोच्चारण

महालया के दिन पूजा में एक घंटा में ही षष्टी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी और दशमी के समस्त मंत्रोच्चारण को पूजा किया जाता है. पूजा को पितृपक्ष में शुरू कर देवी पक्ष में विधिवत समाप्त कर दिया जाता है. इसमें मां दुर्गा के कुंवारी रूप की पूजा होती है. पूजा में जया और विजया दो सखी की प्रतिमा को रखकर विधिवत रूप से दुर्गापूजा की जाती है और घट का विसर्जन कर दिया जाता है. हालांकि प्रतिमा रहेंगी. जिसका दर्शन लोग करेंगे. यहां शारीरिक दूरी का पालन एवं मास्क अनिवार्य हैं.

साल 1973 से हो रही यह अनोखी दुर्गापूजा

वर्ष 1973 से धेनुआ गांव के काली कृष्ण योगाश्रम में यह पूजा होती है, जिसकी शुरूआत सत्यानंद ब्रह्माचारी ने की थी. हालांकि पहली बार के बाद तीन साल पूजा बंद थी. साल 1977 में असम से आए तेजानंद ब्रह्माचारी द्वारा अनोखी दुर्गापूजा की फिर से शुरुआत की गई थी. साल 2003 में उनके निधन के बाद आश्रम में गौरी केदारनाथ मंदिर कमेटी के तत्वावधान में पूजा का पूरा आयोजन होता है.

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