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धर्म-अध्यात्म
प्रभु श्रीराम और हनुमान जी का मिलन की कहानी हुई बहुत ही रोचक
Shiddhant Shriwas
8 May 2022 5:00 AM GMT
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प्रभु श्री राम ने अवतार ले लिया है, बस तभी से वे अपने भगवान के दर्शन की प्रतीक्षा करने लगे.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Story in Ramayana: हनुमान जी प्रभु श्री राम के अनन्य भक्त थे, माता जानकी के लिए वे पुत्रवत थे. श्रीमद्भागवत में कहा गया है कि जो निरंतर भगवान की कृपा की आतुरता से प्रतीक्षा करते हुए प्रारब्ध से मिले सुख-दुख को भोगते हुए हृदय, वाणी और शरीर से भगवान के नाम गुण का गान और पूजन करता है, वह मुक्तिपद का स्वतः ही अधिकारी हो जाता है. हनुमान जी तो जन्म से ही माया के बंधनों से सर्वथा मुक्त थे. उन्होंने बचपन में माता अंजना से बार-बार आग्रह कर अनादि रामचरित सुना था किंतु जब वे अध्ययन करने लगे तो वेद, पुराण आदि के साथ रामकथा को भी पढ़ा. किष्किंधा पर्वत में सुग्रीव के पास आने पर उन्हें ज्ञात हो गया कि अयोध्या में प्रभु श्री राम ने अवतार ले लिया है, बस तभी से वे अपने भगवान के दर्शन की प्रतीक्षा करने लगे.
श्रीराम से मिलने हनुमान ने रखा था विप्र रूप
रावण द्वारा सीता माता को चुराने के बाद खोज करते हुए श्री राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे जहां अपने भाई बालि से तिरस्कृत होने के बाद सुग्रीव हनुमान जी एवं अन्य वानरों के साथ रह रहे थे. दूर से देख कर सुग्रीव को लगा कि उन्हें मारने के लिए बालि ने तीर कमान से सुसज्जित दो राजकुमारों को भेजा है. उन्होंने पता लगाने के लिए हनुमान जी को भेजा तो वे विप्र रूप में पहुंचे. परिचय पूछकर वे अपने स्वामी को पहचान गए और उनके पैरों में गिर पड़े, रोते-रोते बोले ....
एकु मैं मंद मोह बस कुटिल हृदय अग्यान ।
पुनि प्रभु मोहि बिसारेऊ दीनबंधु भगवान ।।
श्रीराम ने उन्हें उठाकर हृदय से लगा लिया, हनुमान जी की प्रार्थना से भगवान ने सुग्रीव से मित्रता की और बालि को मारकर सुग्रीव को किष्किंधा का राज्य दिया.
बल, बुद्धि और विवेक के प्रतीक हनुमान जी
हनुमान जी ने पूरे राम चरित्र में कई बार अपने बल बुद्धि और विवेक का परिचय दिया है. जब राज्यभोग में लिप्त हो कर सुग्रीव जी सीता माता की खोज करना भूल गए तो हनुमान जी ने उन्हें सचेत किया. समुद्र लांघते समय देवताओं द्वारा भेजी गई नाग माता सुरसा ने उनके बल और बुद्धि की परीक्षा लेकर उत्तीर्ण किया तो समुद्र में छिपी राक्षसी सिंहिका को मारकर वे लंका पहुंच गए. वहां द्वार की रक्षा कर रही राक्षसी लंकिनी को एक घूंसा मार कर ठीक कर दिया और छोटा रूप रख कर अंदर घुस गए. अशोक वाटिका में माता जानकी के दर्शन और मुद्रिका देने के बाद उन्हें आश्वस्त कर अशोक वन को उजाड़ दिया. रावण के पुत्र अक्षय कुमार का वध कर रावण को अभिमान छोड़ श्री राम की शरण लेने के लिए समझाया.
रावण नहीं पहचान सका हनुमान जी की क्षमता
रावण तो हनुमान जी को एक वानर ही समझ रहा था, वह उनकी बुद्धि कौशल और क्षमता को नहीं पहचान सका. भरे दरबार में वह तो हनुमान जी को मारने
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