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महाभारत की कथा में भी वर्णन है एकादशी व्रत की महिमा, भगवान श्रीकृष्ण ने ख़ुद सुनाई थी युधिष्ठिर और अर्जुन को यह कथा
पांडवों को जब वनवास मिलता है और अपनी पहचान को छिपा कर रहना पड़ता है तब पांडव कई प्रकार के व्रत, पूजा और अनुष्ठान करते हैं. ऐसा करके पांडव निरंतर शक्तिशाली होते जाते हैं. वनवास के दौरान पांडवों ने अपनी शक्तिओं को बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास जारी रखे. वनवास के दौरान ही भीम की मुलाकात हनुमान जी से होती है और वे उन्हें आर्शीवाद प्रदान करते हैं. हनुमान जी भीम को गले लगाकर अत्याधिक बलशाली बना देते हैं. वहीं अर्जुन धर्नुविद्या में निपुण होने के लिए साधना करते हैं.
युधिष्ठिर राज्य और खोए हुए सम्मान को पाने के लिए निरंतर चिंतन मनन करते. एक बार उन्होंने अपनी व्यथा भगवान श्रीकृष्ण के सम्मुख रखी और पूछा कि प्रभु इन सब परेशानियों को हल क्या है. तब भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि इन सब परेशानियों को दूर किया जा सकता है लेकिन इसके लिए एकादशी का व्रत रखकर विधि पूर्वक पूजा करनी होगी. आग्रह करने पर युधिष्ठिर को भगवान ने एकादशी व्रत के महत्व के बारे में बताया और अर्जुन के एकादशी व्रत की विधि बताई.
अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि अधिक मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को परम एकादशी के नाम से जाना जाता है. परम एकादशी का व्रत कई प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने में सक्षम है. पौराणिक कथाओं के अनुसार कुबेर ने भी परम एकादशी का व्रत रखकर भगवान की आराधना की थी, तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर कुबेर को धनपति बनाया था वहीं राजा हरिश्चंद्र ने भी एकादशी का व्रत रखा था. जिस कारण वे प्रतापी राजा कहलाए.