धर्म-अध्यात्म

करणी माता के मंदिर में सफेद चूहों का दर्शन माना जाता है बेहद शुभ, देश और विदेश से आते हैं लाखों श्रद्धालु

Kunti Dhruw
14 Aug 2021 12:28 PM GMT
करणी माता के मंदिर में सफेद चूहों का दर्शन माना जाता है बेहद शुभ, देश और विदेश से आते हैं लाखों श्रद्धालु
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करणी माता के मंदिर में सफेद चूहों का दर्शन माना जाता है बेहद शुभ

जयपुर। राजस्थान में बीकानेर जिले के देशनोक में एक ऐसा मंदिर है, जिसमें 20 हजार से ज्यादा चूहे हैं। देशनोक स्थित करणी माता के मंदिर में सफेद चूहों (काबा) का दर्शन शुभ माना जाता है। मान्यता के अनुसार, सफेद चूहे दिखाई देने पर मनवांछित कामना पूरी हो जाती है। यहां प्रतिदन सुबह मंगला आरती और संध्या आरती के समय मंदिर में चूहों का जुलूस देखने लायक होता है। प्रदेश में कोरोना महामारी पर लगाम लगते ही इस मंदिर में देश के विभिन्न राज्यों से भक्तों की आवक बढ़ी है। इस संबंध में मंदिर ट्रस्ट का दावा है कि यहां साढ़े छह सौ साल से नियमित पूजा हो रही है। हर साल यहां देश और विदेश से लाखों श्रद्धालु आते हैं।

जानें, मंदिर का इतिहास
करणी माता मंदिर ट्रस्ट के पूर्व चेयरमैन हनुमान सिंह का कहना है कि बीकानेर के तत्कालीन महाराजा स्वर्गीय गंगा सिंह ने मंदिर का निर्माण करवाया था। करणी माता बीकानेर के पूर्व राजपरिवार की कुलदेवी हैं। मंदिर के मुख्य दरवाजे चांदी के हैं। करणी माता के लिए हमेशा सोने का छत्र और चूहों के प्रसाद के लिए चांदी की बड़ी परातों का उपयोग होता है। भक्तों द्वारा मंदिर में चढ़ाए जाने वाला प्रसाद परातों में रखा जाता है और चूहे आकर उस प्रसाद को ग्रहण करते हैं। यहीं प्रसाद भक्तों में वितरित होता है। उन्होंने बताया कि विक्रम संवत 14444 अश्वनी शुक्ल सप्तमी करे मारवाड़ के सुवाण गांव में मेहाजी चारण के घर बेटी का जन्म हुआ था । उसका नाम रिद्धा रखा गया। मान्यता है कि रिद्धा ने बचपन में अपनी बुआ को स्पर्श कर के उनकी टेढ़ी अंगुली को ठीक कर दिया था। उस दिन बुआ ने रिद्धा को करणी नाम दिया।
करणी का चमत्कार
करणी का अर्थ चमत्कारी है। करणी का विवाह दीपोजी चारण से हुआ। विवाह के बाद उन्होंने गृहस्थ त्यागा और तपस्या करने लगी। उस दो दौरान कुछ घटनाएं हुईं, जिनमें रिद्धा (करणी) ने अपना चमत्कार दिखाया और तभी से उसे करणी माता के नाम से पहचान मिली। उसके बाद देशनोक में तत्कालीन राजा गंगा सिंह ने करणी माता का मंदिर बनवाया। ट्रस्ट के पदाधिकारियों का कहना है कि मंदिर में पूजा-अर्चना का काम चारण समाज के लोग करते हैं। मान्यता के अनुसार, देशनोक में चारण समाज के जिस भी व्यक्ति की मृत्यु होती है, वह मंदिर में चूहे के रूप में जन्म लेता है। वहीं, मंदिर में चूहे की मृत्यु होती है तो वह गांव में चारण समाज में बच्चे के रूप में जन्म लेता है। क्षेत्रीय विधायक और राज्य सरकार में उच्च शिक्षामंत्री भंवर सिंह भाटी का कहना है कि दशकों पहले जब देश में चूहों के कारण प्लेग फैला था, तब देशनोक पूरी तरह सुरक्षित था।
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