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![Amarnaath:सांसारिक मोहमाया से मुक्त होने का मार्ग Amarnaath:सांसारिक मोहमाया से मुक्त होने का मार्ग](https://jantaserishta.com/h-upload/2024/07/01/3834551-1.webp)
Amarnaath: राजस्थानी की प्रथम तरंग के 267वें श्लोक में उल्लेखMention (अमरनाथ यात्रा महत्व) है कि कश्मीर के राजा सामदीत शिव थे और वह पहलीगाम के वनों में स्थित बर्फ के शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने जाते थे। इसी ग्रंथ में अन्यत्र भी कवि कल्हण भगवान शिव के हिम स्वरूप को अमरेश्वर के नाम से चित्रित करते हैं। यह यात्रा हजारों वर्षों से चल रही है। बर्फ से ढकी चोटियाँ। अध्यात्म की भूमि हिमालय की सर्वोच्च चोटी पर गुफा में हिम रूप में विराजमान भगवान भोलेनाथ के दर्शन से अमरत्व की राह प्रशस्त करने की इच्छा में सभी मामलों को सहते हुए निरंतर आगे बढ़ते रहते हैं। अमरेश्वर धाम अर्थात अमरनाथ भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है, इसलिए इसे सभी तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है। पुराणों के अनुसार यह यात्रा अनंतकाल से चल रही है और तब भी शिवभक्त और ऋषि-मुनि भगवान शिव के इस दुर्लभ स्वरूप के दर्शन के लिए कश्मीर के जंगल में जाते थे।
स्वयस्कंदपुराण में श्रीअमरेश्वर धाम की महिमा का वर्णन करते हुए बताया गया है कि अमरेश तीर्थ सभी पुरुषार्थों का साधक है, जहां महादेव और देवी पार्वती निवास करते हैं। 11वी शताब्दी में महाकवि कलहण द्वारा कश्मीर के इतिहास पर रचित ग्रन्थ राजतरंगिणीRajatarangini में अमरेश्वर महादेव का वर्णन किया गया है।राजतरंगिणी की प्रथम तरंग के 267वें श्लोक में उल्लेख मिलता है कि कश्मीर के राजा सामदीमत शैव थे और वह पहलगाम के वनों में बर्फ के शिवलिंग स्थित थे। की पूजा-अर्चना करने जाते थे। इसी ग्रंथ में अन्यत्र भी कवि कल्हण भगवान शिव के हिम स्वरूप को अमरेश्वर के नाम से चित्रित करते हैं। स्वरुपी है कि यह यात्रा हजारों वर्षों से चलती आ रही है। भगवान अमरनाथ की यह यात्रा जहां सृष्टि की अमरता के दर्शन कराती है वहीं दूसरी ओर सृष्टि की रचना का आत्मबोध भी कराती है। यही कारण है कि यह यात्रा मंगलकारी है, साथ ही यह यात्रा मनुष्य को आत्मबोध कराकर पृथ्वी मोहमाया से मुक्त होने का मार्ग भी प्रशस्त करती है। पौराण्धिक कथाओं के अनुसार इसी गुफा में भगवान शिव ने मां पार्वती को अमर स्थान की कथा सुनाई थी।
वह पूर्व इस राह पर बढ़ते हुए, शेष नाग के गले में विराजे, अपनी सवारी नंदी, ललाट पर सुशोभित चंद्रमा को भी पीछे छोड़ दिया और श्रीअमरनाथ की गुफा की ओर बढ़ते गए। यहां अप्रत्यक्ष पंच तत्वों में आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी का भी चित्रण किया गया है।ऐसा करके जीवित प्राणियोंमातृ को व्यक्तिगत संदेश दिया कि सब त्यागकर ही अमरता की यात्रा संभव है।आशय यह है कि देह के प्रति हमारा अभिमान भी समाप्त हो जाए। अगर बाहर के सभी वैभव का परित्यग कर हम अपने भीतर अमरता के एक विराट सौंदर्य को रचते हैं, जो यही जीवन का सत्य है और यही शिव भी है। जरूरी है कि हम त्याग के इस भाव को भी धारण करें। यह यात्रा हमें ईश्वर के अवनिषाशी स्वयंसेवक से एकाकार होने की प्रेरणा करती है। शरीर नाशवान ही है पर आत्मा अमर है और हमें इस तथ्य को स्वीकार्य करते हुए अमरता के पथ का वरण करना चाहिए।