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धर्म-अध्यात्म
देश का इकलौता ऐसा मंदिर, जिसका दरवाजा खुलता है पश्चिम दिशा की ओर
Deepa Sahu
6 Sep 2021 2:20 PM GMT
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मंदिरों का प्रवेश द्वार हमेशा पूर्व दिशा में ही होता है।
मंदिरों का प्रवेश द्वार हमेशा पूर्व दिशा में ही होता है। या फिर उत्तर-पूर्व में भी होता है जिसे कि ईशान कोण कहते हैं। सनातन धर्म में इसे देवी-देवताओं की स्थापना के लिए उत्तम दिशा माना गया है। लेकिन हम जिस मंदिर का जिक्र कर रहे हैं उसका प्रवेश द्वार पूर्व या उत्तर-पूर्व में न होकर बल्कि पश्चिम दिशा में है। मान्यता है कि यह देश का पहला मंदिर है जिसका प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा में है। यह मंदिर बिहार के औरंगाबाद में स्थापित सूर्य मंदिर है।
मंदिर निर्माण की ऐसी मिलती है जानकारी
एक ही रात में बने इस मंदिर के निर्माण को लेकर मंदिर के बाहर लगे एक शिलालेख पर ब्राह्मी लिपि में लिखित और संस्कृत में अनूदित एक श्लोक के मुताबिक, इस मंदिर का निर्माण 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेता युग के बीत जाने के बाद इलापुत्र पुरुरवा ऐल ने आरंभ करवाया था । शिलालेख से पता चलता है कि इस वर्ष यानी साल 2017 में इस पौराणिक मंदिर के निर्माण काल को एक लाख पचास हजार सत्रह वर्ष पूरे हो गए हैं ।
रात भर में ही हुआ था इस सूर्य मंदिर का निर्माण
मान्यता है कि इस सूर्य मंदिर को त्रेता युग में देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा जी ने स्वयं ही बनाया था। उन्होंने इस मंदिर को स्वयं ही बनाया था। हालांकि मंदिर निर्माण से जुड़ी इन मान्यताओं के कोई साक्ष्य तो नहीं है। लेकिन लोगों से मिली जानकारी के अनुसार इस मंदिर को एक रात में ही बनाया गया था। तकरीबन एक सौ फीट ऊंचा यह सूर्य मंदिर स्थापत्य और वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। यह सूर्य मंदिर पुरी के जगन्नाथ मंदिर से काफी मिलता-जुलता है।
मंदिर का दरवाजा खुलता है पश्चिम में
यूं तो सभी मंदिरों का दरवाजा पूर्व दिशा में खुलता है लेकिन इस सूर्य मंदिर का दरवाजा पश्चिम दिशा में खुलता है। हिंदू धर्म में भगवान को पूर्व का स्थान दिया गया है। इसके अलावा नॉर्थ ईस्ट यानी कि उत्तर-पूर्व दिशा जिसे ईशान कोण कहते हैं वह भी काफी शुभ मानी जाती है। ऐसे में इस मंदिर का पश्चिम में खुलने वाला द्वार एक रहस्य है। ऐसा किसलिए किया गया है इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती है।
यहां घंटी बजाकर जगाते हैं भगवान को
इस मंदिर में प्रतिदिन भोर में 4 बजे भगवान को घंटी बजाकर जगाया जाता है। इसके बाद पुजारी भगवान को नहलाते हैं। ललाट पर चंदन लगाकर नया वस्त्र पहनाते हैं। यह परंपरा कई दशकों से चली आ रही है। इस मंदिर के पास ही एक सूर्यकुंड है जहां व्रती सूर्य को अर्घ्य देते हैं और पूजा करते हैं। यहां कार्तिक और चैत्र महीने में कई राज्यों से श्रद्धालु छठ पूजा करने पहुंचते हैं।
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