धर्म-अध्यात्म

पोंगल पर होती है दक्षिण भारत के नव वर्ष की शुरूआत

Subhi
13 Jan 2022 2:19 AM GMT
पोंगल पर होती है दक्षिण भारत के नव वर्ष की शुरूआत
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पोंगल, दक्षिण भारत में मनाया जानें वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन को दक्षिण भारत में नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। ये पर्व कई दिनों के तक मनाया जाता है। पोंगल का पर्व सूर्य के उत्तरायण में आने की तिथि पर मनाया जाता है।

पोंगल, दक्षिण भारत में मनाया जानें वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन को दक्षिण भारत में नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। ये पर्व कई दिनों के तक मनाया जाता है। पोंगल का पर्व सूर्य के उत्तरायण में आने की तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन ही उत्तर भारत में मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। इस साल पोंगल का पर्व 14 जनवरी को मनाया जाएगा। ये पर्व दक्षिण भारत में कई दिनों तक मनाया जाता है। इस पर्व में भगवान सूर्य,इंद्र देव और अपने खेत-खलिहान के साथ गाय और बैलों की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं पोंगल पर्व के बारे में.....

पोंगल का पर्व –

1-पोंगल का पर्व दक्षिण भारत में नव वर्ष के रूप में मानाया जाता है। ये त्योहार सूर्य के उत्तरायण होने के दिन मनाया जाता है। इस दिन उत्तर भारत में मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। पोगंल का शाब्दि अर्थ उफान या विप्लव होता है। जिसे कि पोगंल के दिन बनाई जाने वाली दूध की विशेष खीर के उफान से जोड़ कर देखा जाता है।पोगंल का त्योहर चार दिनों तक चलता है। जिनके अलग-अलग दिन अलग-अलग नाम और रिवाज हैं।

1- भोगी पोंगल- ये पोंगल का पहला दिन होता है। इस दिन बारिश के देवता इंद्र का पूजन होता है। इस दिन कटी हुई फसल की डंडियों को जलाया जाता है। इसे भोगी कहते हैं।

2- थाई पोंगल – ये पोंगल त्योहार का दूसरा दिन होता है। इस दिन सूर्य देव का पूजन किया जाता है।

3- मट्टू पोंगल – पोंगल के तीसरे दिन को मट्टू पोंगल कहा जाता है। इस दिन मट्टू अर्थात बैल और पशुधन की पूजा की जाती है।

4-कन्नुम या कानु – पोंगल के चौथे दिन की रस्म को कन्नुम या कानु कहा जाता है। इस दिन हल्दी के पत्ते पर सुपारी और गन्ने को रख कर खुले में पकवान बनाया जाता है। चावल, दूध,घी, शकर से बने इस पकवान को ही पोंगल कहा जाता है। इसका भोग भगवान सूर्य को अर्पित करते हैं। सूर्य देव की पूजा अर्चना कर नये साल की शुरूआत की जाती है।


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