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धर्म-अध्यात्म
जम्मू के वासुकि नाग मंदिर में की जाती है नागों राजा की पूजा, क्या है इस मंदिर का रहस्य?
Bhumika Sahu
7 Jun 2022 4:02 AM GMT
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वासुकी नाग मंदिर भद्रवाह के प्राचीन मंदिरों में से एक है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। उज्जैन. वासुकी नाग मंदिर भद्रवाह के प्राचीन मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को भद्रकाशी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाने से पहले इस मंदिर में पूजा करना जरूरी होता है, तभी पूरा फल मिलता है। आपको बता दें भद्रवाह जम्मू से लगभग 185 किलोमीटर दूर है। मिनी कश्मीर के नाम से मशहूर डोडा जिले का भद्रवाह अपने सुंदरता और वासुकि नाम मंदिर के लिए जाना जाता है। इस मंदिर के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं। इस मंदिर से जुड़ी कई कथाएं भी और मान्यताएं भी प्रचलित हैं। आगे जानिए इस मंदिर से के बारे में खास बातें...
ऐसा है मंदिर का स्वरूप
ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में हुआ था। ये मंदिर वास्तुकला और मूर्तिकला का शानदार उदाहरण है। यह मंदिर ऋषि कश्यप के पुत्र और सर्पों का राजा वासुकि को समर्पित है। मंदिर में नागराज वासुकि और राजा जमुट वाहन की प्रतिमा स्तापित है, जो 87 डिग्री पर झुकी हुई है। वासुकि नाग मंदिर से कुछ दूर नागराज वासुकि का निवास स्थान है, जिसे कैलाश कुंड कहा जाता है, इसे वासुकि कुंड के नाम से भी जाना जाता है। हर साल लाखों भक्त यहां दर्शन करने आते हैं।
ये है मंदिर से जुड़ी कथा
वासुकि नाग मंदिर के बारे में कथा प्रचलित है कि 1629 में बसोहली के राजा भूपत पाल ने भद्रवाह पर कब्जा किया था। एक बार भद्रवाह की ओर जाते समय राजा भूपत पाल ने कैलाश कुंड का रास्ता अपनाया। राजा कुंड पार कर रहा था तभी उसे विशाल नाग ने जकड़ लिया। राजा के माफी मांगने पर नाग ने राजा के कान के छल्ले मांगे और उनका मंदिर बनवाने को कहा। राजा ने मंदिर का काम शुरू करवा दिया। एक बार राजा छत्रगलां की ओर से वापिस लौट रहा था। रास्ते में प्यास लगने पर झरने में राजा ने पानी पीने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया तो उनके हाथ में नाग देवता को दिया गया छल्ला आ गया। राजा ने यह छल्ला वापस कैलाश कुंड में चढ़ाया और मंदिर का काम जल्दी से पूरा करवाया। जिस कुंड में राजा ने छल्ला वापस डाला उसका नाम वासक छल्ला पड़ा। राजा भूपत पाल द्वारा बनवाया मंदिर वासुकि नाग मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
धर्म ग्रंथों में वासुकि नाग
पुराणों में वासुकि को नागों का राजा बताया गया है। ये भगवान शिव के गले में लिपटे रहते हैं। ये महर्षि कश्यप व कद्रू की संतान हैं। इनकी पत्नी का नाम शतशीर्षा है। ये शेषनाग के छोटे भाई भी हैं। शेषनाग द्वारा राज-पाठ त्यागने के बाद इन्हें सर्पों का राजा बनाया गया। धर्म ग्रंथों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय नागराज वासुकि की नेती (रस्सी) बनाई गई थी। त्रिपुरदाह (इस युद्ध में भगवान शिव ने एक ही बाण से राक्षसों के तीन पुरों को नष्ट कर दिया था) के समय वासुकि शिव धनुष की डोर बने थे।
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