धर्म-अध्यात्म

बेहद रोचक है महथिन माई का इतिहास

Manish Sahu
19 Sep 2023 6:25 PM GMT
बेहद रोचक है महथिन माई का इतिहास
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धर्म अध्यात्म: बिहार के भोजपुर में महथिन माई मंदिर की कहानी बेहद ही चमत्कारिक है. इस मंदिर का इतिहास दर्जनों चमत्कार से भरे हैं. बिहिया प्रखंड में मौजूद महथिन माई के गुणगान आज भी लोग करते नहीं थकते हैं. तकरीबन 3500 साल पुराना इस देवी का इतिहास है. यह जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी की दूर पर स्थित बिहिया में स्थापित है प्रसिद्ध महथिन माई मंदिर.

इस मंदिर का कोई लिखित इतिहास तो नहीं है पर प्रचलित इतिहास के अनुसार 3500 वर्ष पूर्व एक जमाने में इस क्षेत्र में हैहय वंश का राजा रणपाल हुआ करता था जो अत्यंत दुराचारी था. उसके राज्य में उसके आदेशानुसार नव विवाहित कन्याओं का डोला ससुराल से पहले राजा के घर जाने का चलन था. महथिन माई जिनका प्राचीन नाम रागमति था, पहली बहादुर महिला थी. जिन्होंने इस डोला प्रथा का विरोध करते हुए राजा के आदेश को चुनौती दी.

महथिन माई के प्रति लोगों की गहरी आस्था है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कोई यदि जीवन में गलत आचरण से धन प्राप्त करता है. धन और बल के बदौलत लोगों पर गलत तरीके से प्रभाव स्थापित करना चाहता है तो लोग एक ही बात कहते है कि यह महथिन माई की धरती है. यहां न तो ऐसे लोगों की कभी चला है न चलेगा.
बताया जाता है कि राजा के सैनिकों और महथिन माई (रागमति )के सहायकों के बीच जम कर युद्ध हुआ. इस दौरान महथिन माई खुद को घिरता देख सती हो गई. उनके श्राप से दुराचारी राजा रणपाल के साथ उसके वंश का इस क्षेत्र से विनाश हो गया. आज भी हैहव वंश के लोग पूरे शाहाबाद क्षेत्र में न के बराबर मिलते हैं.
महथिन माई के बारे में चमत्कार से जुड़े कई किस्से आज भी सुने जाते हैं. कहा जाता है कि एक अंग्रेज अधिकारी जो बिहिया से गुजरने वाला रेल लाइन बिछवा रहा था, वह कुष्ट रोग से पीड़ित था. रेल लाइन महथिन माई के मिट्टीनुमा चबूतरे के ऊपर से होकर गुजरना था. बताया जाता है दिन में लाइन बिछता और रात में उखड़ा पाया जाता. परेशान अंग्रेज अफसर को सपना आया कि लाइन टेढ़ा करके ले जाओ तुम्हारा कुष्ट रोग दूर हो जाएगा. ऐसा हुआ भी. आज भी महथिन माई मंदिर के समीप रेल लाइन टेढ़ा होकर हीं गुजरी है.

सप्ताह में दो दिन शुक्रवार तथा सोमवार को यहां मेला लगता है. इसके अलावा रोज ही दूर दूर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु मनौती मांगने या पूरा होने पर यहां पूजा के लिए पहुंचते है. लग्न मुहूर्त के अलावा सालों भर यहां ब्याह का आयोजन होता है. जिसमें सैकड़ों जोड़े महथिन माई को साक्षी मानकर दांपत्य सूत्र में बंधते है. यहां शादियां बिना दहेज और फिजूल खर्ची के सम्पन्न होती है. सती होने के पूर्व और सती होने के बाद आज भी महथिन माई समाजिक कुरीतियों के खिलाफ ज्वाला बनकर जल रही है. पहले उन्होंने डोला प्रथा का विरोध किया था. अब उनकी छत्र-छाया में दहेज जैसे गलत प्रथा से तौबा करते देखे जा रहे है.

बहुत पहले इस जगह पर मिट्टी का चबूतरा था, बाद में ईंट की बनी. जैसे-जैसे लोगों की आस्था बढ़ती गयी कालांतर में चबूतरा मंदिर का स्वरूप ले लिया. लोगों के सहयोग से मंदिर परिसर में शंकर जी और हनुमान जी की मूर्ति स्थापित हो गया है. इसके अलावा सरकारी स्तर पर धर्मशाला, शौचालय तथा स्थानीय रामको कम्पनी द्वारा शौचालय का निर्माण कराया गया है. वहीं मनौती पूरी होने पर एक श्रद्धालु ने भव्य यात्री शेड का निर्माण करा दिया. मंदिर गर्भगृह में महथिन माई की पड़ी स्थापित है. उनके अगल बगल के दो ¨पडियों के बारे में कहा जाता है वो उनकी सहायिकाओं का प्रतीक है. श्रद्धालु उनकी भी पूजा करते है.

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