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- बेहद रोचक है महथिन माई...
इस मंदिर का कोई लिखित इतिहास तो नहीं है पर प्रचलित इतिहास के अनुसार 3500 वर्ष पूर्व एक जमाने में इस क्षेत्र में हैहय वंश का राजा रणपाल हुआ करता था जो अत्यंत दुराचारी था. उसके राज्य में उसके आदेशानुसार नव विवाहित कन्याओं का डोला ससुराल से पहले राजा के घर जाने का चलन था. महथिन माई जिनका प्राचीन नाम रागमति था, पहली बहादुर महिला थी. जिन्होंने इस डोला प्रथा का विरोध करते हुए राजा के आदेश को चुनौती दी.
सप्ताह में दो दिन शुक्रवार तथा सोमवार को यहां मेला लगता है. इसके अलावा रोज ही दूर दूर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु मनौती मांगने या पूरा होने पर यहां पूजा के लिए पहुंचते है. लग्न मुहूर्त के अलावा सालों भर यहां ब्याह का आयोजन होता है. जिसमें सैकड़ों जोड़े महथिन माई को साक्षी मानकर दांपत्य सूत्र में बंधते है. यहां शादियां बिना दहेज और फिजूल खर्ची के सम्पन्न होती है. सती होने के पूर्व और सती होने के बाद आज भी महथिन माई समाजिक कुरीतियों के खिलाफ ज्वाला बनकर जल रही है. पहले उन्होंने डोला प्रथा का विरोध किया था. अब उनकी छत्र-छाया में दहेज जैसे गलत प्रथा से तौबा करते देखे जा रहे है.