धर्म-अध्यात्म

इस्लाम धर्म में शब-ए-बरात पर्व का बहुत महत्व है,जानेंकब है शब-ए-बरात

Kajal Dubey
15 March 2022 10:12 AM GMT
इस्लाम धर्म में शब-ए-बरात पर्व का बहुत महत्व है,जानेंकब है शब-ए-बरात
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शब का अर्थ रात होता है और बरआत का अर्थ बरी होना होता है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। शब का अर्थ रात होता है और बरआत का अर्थ बरी होना होता है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक यह रात साल में एक बार शाबान महीने की 14 तारीख को सूर्यास्त के बाद शुरू होती है. इस्लाम में यह रात बेहद फजीलत की रात मानी जाती है. इस रात को मुस्लिम दुआएं मांगते हैं और अपने गुनाहों की तौबा करते हैं. शब-ए-बारात की सारी रात इबादत और तिलावत का दौर चलता है. इस रात अपने उन परिजनों, जो दुनिया से रुखसत हो चुइस्लाम धर्म में शब-ए-बरात पर्व का बहुत महत्व है,जानेंकब है शब-ए-बरातके हैं, उनकी मगफिरत की दुआएं की जाती हैं.'

इस्लाम धर्म में शब-ए-बरात पर्व का बहुत महत्व है. मान्यता है कि इस रात अगर कोई इंसान शब-ए-बारात की रात सच्चे दिल से अल्लाह की इबादत करते हुए अपने पापों के लिए माफी मांगता है तो अल्लाह उसके सारे पापों को माफ कर देता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष यह पर्व 18 मार्च 2022 को शुक्रवार की रात बड़े ही धूमधाम के साथ मनाई जायेगी. जुमा (शुक्रवार) के दिन इस पर्व के होने से इसका महत्व बहुत ज्यादा बढ़ जाता है.
शब-ए-बारात का महात्म्य
इस पर्व की रात दुनिया से रुखसत हो चुके अपनों की कब्र पर जाकर उनके हक में दुआ की जाती है. इस्लाम धर्म के अनुसार इस रात खुदा की अदालत में पाप और पुण्य के निर्णय लिये जाते हैं. अल्लाह अपने बंदों के कर्मों का हिसाब-किताब करते हैं. बहुत सारे जहन्नुम में जी रहे लोगों को वहां से आजाद कर जन्नत भेज दिया जाता हैं. अल्लाह ताला इस रात सभी की इबादत को स्वीकारते हैं, और उऩके पापों को माफ कर देते हैं. लेकिन कहा जाता है कि खुदा उन दो लोगों को माफ नहीं करता, एक वे जो मुसलमान होकर मुसलमान से वैमनस्य रखते हैं, उनके खिलाफ षड़यंत्र रचते हैं, दूसरे उन लोगों को भी नहीं बख्शा जाता, जिन्होंने किसी की जिंदगी, किसी का हक छीन लिया हो.
शब-ए-बरात का सेलीब्रेशन
शब-ए-बारात से पूर्व मस्जिदों की सफाई करके उसे सजाया जाता है. सूर्यास्त के बाद लोग मस्जिदों में आते हैं, यहां इबादत करते हैं, और अपने-अपने बुजुर्गों के लिए फातिहा पढ़ते हैं. इस दिन बहुत से लोग शब-ए-बरात का रोजा रखते हैं. कुछ उलेमा मानते हैं कि इस दिन रोजा रखने से बहुत सारा सबाब (पुण्य) मिलता है, जबकि बहुत से उलेमा इस मत से सहमत नहीं होते. उनके अनुसार शब-ए-बरात के दिन रोजा रखना जरूरी नहीं है. ऐसी भी मान्यता है कि शब-ए-बरात के दिन से ही रूहानी साल की शुरुआत हो जाती है. यह भी पढ़ें : Happy Holi In Advance 2022 Wishes: होली से पहले इन हिंदी WhatsApp Messages, Facebook Greetings, Quotes के जरिए दें प्रियजनों को शुभकामनाएं
शब-ए-बरात की रात आतिशबाजी हराम होती है!
शब-ए-बारात की सारी रात इबादत और तिलावत का दौर चलता है. इस रात लोग अपने मृत परिजनों के लिए मगफिरत की दुआएं की जाती हैं. लेकिन कुछ लोग इस रात को शोर-शराबा करते हैं, जश्न मनाते हैं और आतिशबाजियां भी छुड़ाते हैं. लेकिन उलेमा इस दिन आतिशबाजियां छुड़ाना हराम मानते हैं. उनके अनुसार शब-ए-बरात की रात जश्न नहीं केवल इबादत और प्रार्थना की जाती है.


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