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धर्म-अध्यात्म
अक्षय तृतीया पर खुलेंगे बद्रीनाथ धाम के कपाट, जानें मंदिर से जुड़ी ये रोचक बात
Tulsi Rao
26 April 2022 6:41 PM GMT
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदुओं के चार प्रमुख धाम होते हैं. जिनमें से एक बद्रीनारायण (badrinath) तीर्थस्थल भगवान विष्णु के चतुर्थ अवतार नर एवं नारायण की तपोभूमि है. हिमालय की तलहटी में बसे बद्रीनाथ धाम को ''धरती का वैकुण्ठ'' कहा जाता है. बद्रिकाश्रम यानि ''बदरी सदृशं तीर्थम् न भूतो न भविष्यति ''अर्थात बद्रीनाथ जैसा स्थान मृत्युलोक में न पहले कभी था न भविष्य में कभी होगा. तो, चलिए अक्षय तृतीया (Akshaya tritiya) के मौके पर और खास तौर से चारधाम की यात्रा खुलने के उपलक्ष्य में (akshaya tritiya 2022) आपको भगवान बद्रीनाथ के बारे में कुछ रोचक बातें (badrinath temple mysterious facts) बताते हैं.
मंदिर से जुड़ी रोचक बातें
माना जाता है कि भगवान विष्णु विग्रह रूप में यहां तपस्यारत हैं. यहां के दिव्य दर्शन करने पर भगवान विष्णु के विग्रह को एकटक निहारने पर ऐसी अनुभूति होती है जैसे सामने साक्षात भगवान विष्णु हों.
माना जाता है कि जोशीमठ में जहां शीतकाल में बद्रीनाथ की चल मूर्ति रहती है. वहां नरसिंह का एक मंदिर है. शालिग्राम शिला में भगवान नरसिंह का अद्भुत विग्रह है. इस विग्रह की बाईं भुजा पतली है और समय के साथ ये और भी पतली होती जा रही है. जिस दिन इनकी कलाई मूर्ति से अलग हो जाएगी, उस दिन नर-नारायण पर्वत एक हो जाएंगे. जिससे बद्रीनाथ का मार्ग बंद हो जाएगा और इस वजह से कोई यहां दर्शन नहीं कर पाएगा.
भगवान नारायण के वास के रूप में जाना जाने वाला बद्रीनाथ धाम आदि शंकराचार्य की कर्म स्थली रहा है. ये माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने आठवीं सदी में मंदिर का निर्माण करवाया था.
बद्रीनाथ धाम में ब्रह्मकपाल तीर्थ है जहां शिव जी को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली थी. यहां पितरों को पिंड तर्पण दिया जाता है. भगवान बद्री विशाल के मंदिर परिसर में ही मां लक्ष्मी का मंदिर है. बद्रीविशाल के दर्शन के बाद ही यहां भक्त मां लक्ष्मी के चरणों में शीश झुकाकर उनसे आशीर्वाद लेते हैं.
बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु के एक मीटर ऊंची काली पत्थर (शालिग्राम) की प्रतिमा है. जिसमें भगवान विष्णु ध्यान मुद्रा में सुशोभित है. मंदिर के पुजारी शंकराचार्य के वंशज होते है जिन्हें रावल कहा जाता है. ये जब तक रावल के पद पर रहते हैं इन्हें ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करना होता है.
मंदिर के पास बनी व्यास और गणेश की गुफाएं हैं. जो कि बहुत सुन्दर हैं. यहीं बैठकर वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना की थी. माना जाता हैं कि पांडव, द्रोपदी के साथ इसी रास्ते होकर स्वर्ग
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