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धर्म-अध्यात्म
माहेश्वरी समाज के पूर्वजों को मिला था श्राप, जानें मुक्ति? कैसे मिली
Teja
7 Jun 2022 7:24 AM GMT
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महेश नवमी (Mahesh Navami) 09 जून दिन गुरुवार को है. इस दिन भगवान शिव की विधि विधान से पूजा की जाती है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | लमहेश नवमी (Mahesh Navami) 09 जून दिन गुरुवार को है. इस दिन भगवान शिव की विधि विधान से पूजा की जाती है. हर साल ज्येष्ठ माह के शुकल पक्ष की नवमी तिथि को महेश नवमी मनाते हैं. इस तिथि को माहेश्वरी समाज ऋषियों के श्राप से मुक्त हुआ था और उनको भगवान शिव का नाम मिला था, जिससे इस समाज का नाम माहेश्वरी पड़ा. तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्ण कुमार भार्गव के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल नवमी तिथि 08 जून को प्रात: 08:30 बजे से शुरु हो रही है, जो 09 जून को प्रात: 08:21 बजे तक रहेगी. 09 जून को पूरे दिन रवि योग है.
महेश नवमी की कथा
पौराणिक कथा अनुसार, एक राजा खडगलसेन थे, जिनको कोई संतान नहीं थी. काफी कठिन तप करने के बाद उनको एक पुत्र हुआ. उसका नाम सुजान कंवर रखा गया. ज्योतिषाचार्य और ऋषियों ने राजा को बताया कि आप अपने पुत्र को 20 साल तक उत्तर दिशा में न जाने दें.
समय के साथ जब राजकुमार बड़े हुए, तो वे एक दिन शिकार खेलने जंगल में गए. उस दिन वे भूलवश उत्तर दिशा में चले गए, जहां पर ऋषि मुनि तपस्या रहे थे. सैनिकों ने राजकुमार को काफी रोकने का प्रयास किया, लेकिन वे नहीं माने.
किसी कारणवश ऋषि मुनि की तपस्या भंग हो गई, जिसकी वजह से वे अत्यंत क्रोधित हो गए. उन्होंने राजकुमार सुजान कंवर को श्राप दे दिया, जिससे वे पत्थर की मूर्ति में बदल गए. उनके साथ गए सैनिक भी पत्थर के हो गए. अन्य एक कथा में कहा जाता है कि ऋषि ने वंश खत्म होने का श्राप दिया था.
गुप्तचरों ने राजा खडगलसेन को इस घटना की जानकारी दी, तो वे परेशान हो गए. वे तुरंत घटनास्थल पर पहुंचे. उनके साथ उनकी पत्नी चंद्रावती और पत्थर बने सैनिकों की पत्नियां भी थीं. उन सभी लोगों ने ऋषि मुनि से तपस्या भंग होने के लिए क्षमा प्रार्थना की और श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा.
तब ऋषि ने बताया कि इस श्राप से मुक्ति का एक मात्र उपाय भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा है. उनकी कृपा से ये श्राप प्रभावहीन हो जाएगा और ये सभी पुन: मनुष्य हो जाएंगे. तब राजा खडगलसेन ने अपनी पत्नी और सभी सभी सैनिकों की पत्नियों के साथ भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की.
Teja
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