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- इसलिए कार्तिक पूर्णिमा...
देवउठनी एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक चलने वाले पुष्कर स्नान की महत्ता इससे ही सिद्ध होती है कि इसके बिना चारों धाम की यात्रा का पुण्य फल भी अधूरा रहता है। पूरे वर्ष में इन पांच दिनों में पुष्कर तीर्थ का विशेष महत्त्व है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यह महत्त्व और भी बढ़ जाता है। इन पांच दिनों को भीष्म पंचक के नाम से भी जाना जाता है।
यह कथा उतनी ही पुरानी है, जितनी पुरानी सृष्टि। एक बार सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी ने पृथ्वी लोक पर यज्ञ करने का निश्चय किया। उस समय पृथ्वी पर वज्रनाभ नाम के राक्षस का आतंक चारों ओर फैला हुआ था। वह बच्चों को जन्म लेते ही मार देता था। उसके आतंक की कहानियां ब्रह्मलोक तक पहुंचीं। ब्रह्माजी ने उस दैत्य का अंत करने का निश्चय किया। उन्होंने अपने कमल पुष्प से उस दैत्य पर भीषण प्रहार कर उसका अंत कर दिया। उस पुष्प का प्रहार इतना प्रचंड था कि जहां वह गिरा, उस स्थान पर एक विशाल सरोवर बन गया। पुष्कर यानी कमल अर्थात कमल और कर यानी हाथ। हाथ से पुष्प द्वारा किए गए आघात से इस सरोवर के निर्माण होने के कारण इसका नाम पुष्कर सरोवर हो गया। और ब्रह्माजी द्वारा यहां यज्ञ करने से इस सरोवर को आदि तीर्थ होने का पुण्य भी प्राप्त हुआ।
आदि तीर्थ तीर्थराज पुष्कर के महत्व को दर्शाती हुई कई कथाएं हैं। पूरे भारत में सिर्फपुष्कर में ही ब्रह्माजी का एकमात्र मंदिर होने के पीछे भी एक कथा है। स्थानीय मान्यता के अनुसार यह कथा देवी सावित्री के ब्रह्माजी को शाप देने से जुड़ी है। ब्रह्माजी ने पुष्कर को यज्ञ क्षेत्र के रूप में चुना। यज्ञ के लिए निश्चित मुहूर्त पर जब देवी सावित्री वहां नहीं पहुंचीं, तो ब्रह्माजी ने गायत्री नाम की एक गुर्जर कन्या से विवाह करके यज्ञ संपन्न किया। देवी सावित्री जब वहां पहुंचीं तो अपने स्थान पर गायत्री को बैठा देखकर क्रोधित हो गईं। उन्होंने ब्रह्माजी को शाप दिया कि संपूर्ण पृथ्वी पर पुष्कर को छोड़कर उनकी कहीं भी पूजा नहीं होगी। संपूर्ण विश्व में ब्रह्माजी के इसी एकमात्र मंदिर के कारण ही मंदिरों की नगरी पुष्कर की विशिष्ट पहचान और महत्ता है।
ऐसी मान्यता है कि वहां किया हुआ जप-तप, पूजा-पाठ और यज्ञ अक्षय फल देने वाला होता है, विशेष रूप से कार्तिक एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक। पुष्कर यात्रा का पूर्ण फल यज्ञ पर्वत पर स्थित अगस्त्य कुंड में स्नान करने पर ही मिलता है। शास्त्रों और पुराणों के अनुसार तीर्थों के गुरु पुष्कर की महत्ता इससे ही स्पष्ट हो जाती है कि पुष्कर स्नान के बिना चारों धाम की यात्रा का पुण्य फल भी अधूरा रहता है।
अजमेर शहर से 11 किलोमीटर दूर 52 घाटों और लगभग तीन किलोमीटर के दायरे में फैला पुष्कर अपनी मनोहारी छटा के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। पुष्कर सरोवर भी तीन हैं। ज्येष्ठ, मध्य और कनिष्ठ पुष्कर। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के श्री विष्णु और कनिष्ठ पुष्कर के देवता रुद्र हैं। लेकिन पुष्कर का अनंतकालीन महत्त्व ज्येष्ठ पुष्कर के कारण है।