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- मंदिर का निर्माण...

ऐसा माना जाता है कि मंगलागौरी मंदिर का निर्माण लगभग 10 हजार वर्ष पहले हुआ था. इसके अतिरिक्त, यह माना जाता है कि माता सती का एक हिस्सा इस जगह पर गिरा था. प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख है कि गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र ने भी यहां ध्यान किया था. मंदिर में प्राचीन काल से ही लगातार जलती हुई ज्वाला बनी हुई है, जो आज भी जलती रहती है.
परिसर में स्थित मौल श्री के वृक्ष पर नहीं पड़ता पतझड़ का प्रभाव
मंदिर परिसर में एक मौल श्री वृक्ष है, लेकिन इसकी उम्र का कोई प्रमाण नहीं है. लोग काफी समय से इस पेड़ को देख रहे हैं. गौरतलब पहलू यह है कि पेड़ पर पतझड़ का कोई असर नहीं पड़ता है. भक्तों को इसके पास बैठने मात्र से ही शांति मिलती है. आज भी श्रद्धालु यहां आते हैं और मां के दर्शन कर प्रस्थान करते हैं.
हजारों वर्ष से जल रहा अखंड ज्योत
मां मंगला गौरी मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है. इस मंदिर के पुजारियों के अनुसार, माता सती के शरीर के विभिन्न अंग राष्ट्र भर के विभिन्न पहाड़ों पर गिरे थे, जिनमें से एक हिस्सा पालन पीठ के रूप में यहां गिरा था. ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में मां अपने भक्तों का ख्याल रखती हैं. पुजारियों का दावा है कि दंडी स्वामी ने 10,000 वर्ष पहले इस मंदिर का निर्माण कराया था। उन्होंने अपनी साधना से मां की पावन आंचल में अखंड ज्योति प्रज्वलित की, जो आज भी जल रही है. बोला जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की सभी सच्ची इच्छाएं पूरी होती हैं.
गर्भ गृह में एक बार में 5 श्रद्धालुओं का प्रवेश नहीं
मां मंगला गौरी मंदिर समिति ने घोषणा की है कि कोविड-19 महामारी के कारण भक्तों को सामाजिक दूरी बनाए रखते हुए व्यवस्थित कतार में मां के दर्शन कराने की योजना बनाई गई है। मास्क पहनना भी जरूरी है। किसी भी समय गर्भगृह में अधिकतम 5 भक्तों को ही प्रवेश की अनुमति है. मंदिर परिसर में हैंड सैनिटाइजर की प्रबंध की गई है. इसके अतिरिक्त, मंदिर परिसर को रोजाना तीन बार स्वच्छता से गुजरना होगा.
