धर्म-अध्यात्म

Teachers Day : गुरु-शिष्य परंपरा से जुड़े अनमोल वचन

Shiddhant Shriwas
5 Sep 2021 8:10 AM GMT
Teachers Day : गुरु-शिष्य परंपरा से जुड़े अनमोल वचन
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05 सितंबर 2021 को शिक्षक दिवस है। हिंदू धर्म में गुरु और शिष्य की परंपरा वैदिक काल से ही चली आ रही है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। 05 सितंबर 2021 को शिक्षक दिवस है। हिंदू धर्म में गुरु और शिष्य की परंपरा वैदिक काल से ही चली आ रही है। हिंदू धर्म में न सिर्फ ऋषियों-मुनियों को गुरु का दर्जा प्राप्त है, बल्कि वेद, पुराण और धार्मिक ग्रंथों को भी गुरु के बराबर रखा गया है। संस्कृत में वेद का अर्थ होता है ज्ञान और गुरु दो शब्दों से मिलकर बना है- 'गु' शब्द का अर्थ होता है अंधकार और 'रू' का अर्थ होता प्रकाश ( ज्ञान)। यानी जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए वही गुरु है। भारतीय संस्कृति में गुरु का पद सबसे ऊंचा और सम्मानित होता है। गुरु ही हमें सही और गलत के पहचान की द्दष्टि देता है। भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान भगवान से भी ऊपर है। गुरु को कहीं ब्रह्रा विष्णु महेश तो कहीं गोविंद कहा गया है। आइए जानते हैं वैदिक संस्कृति में गुरु और शिष्य की परंपरा से जुड़े अनमोल वचन...

1- गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु,

गुरु देवो महेश्वरा,

गुरु साक्षात परब्रह्म,

तस्मै श्री गुरुवे नम:

अर्थात- गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।

2- महान गुरु आचार्य चाणक्य के अनुसार एक आदर्श शिष्य के गुण इस प्रकार होने चाहिए।

काकचेष्टा बको ध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च ।

अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पञ्चलक्षणम् ।।

अर्थात- एक विद्यार्थी के अंदर यह पांच गुण अवश्य ही होने चाहिए।

- कौवे की तरह जानने की चेष्टा

- बगुले की तरह ध्यान

- कुत्ते की तरह सोना यानी निंद्रा में होना

- अल्पाहारी, आवश्यकतानुसार खाने वाला

- गृह का त्याग करना।

3- अन्धतमः प्रविशन्ति येड्विद्यामुपासते।

त्तो भूयडव ते तमो येडविद्ययारता।

अर्थात- जो अन्धकार में प्रवेश करते हैं वे मात्र विद्या की उपासना करते हैं और वे एकांगी होते हैं जो मात्र विद्या में रत रहते हैं।

5- गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।

अर्थात- गुरु को ईश्वर से बड़ा दर्जा दिया गया है। क्योंकि शिक्षक स्वयं कभी बुलंदियों पर नहीं पहुचते लेकिन बुलंदियों पर पहुंचाने वालों को तैयार शिक्षक ही करते हैं।

6- आचार्य देवो भव:

अर्थात- शिक्षक ईश्वर के समान होता है।

8- गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष।

गुरु बिन लखै न सत्य को गुरु बिन मिटै न दोष।।

9- गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत।

वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।।


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