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दुनिया को पढ़ाया एकता का पाठ, 624वें प्रकट दिवस पर पढ़ें उनकी संत कबीर की जीवनी

Shiddhant Shriwas
23 Jun 2021 11:35 AM GMT
दुनिया को पढ़ाया एकता का पाठ, 624वें प्रकट दिवस पर पढ़ें उनकी संत कबीर की जीवनी
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कबीर साहेब का प्राकट्य सन 1398 (संवत 1455), ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को ब्रह्ममूहर्त के समय कमल के पुष्प पर हुआ था. कबीर जी के संबंध में भ्रांति हैं कि उन्होंने एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से जन्म लिया था. लेकिन यह असत्य है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारत के इतिहास को तीन कालखंडों में विभाजित किया गया है जैसे आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल. मध्यकाल के भक्तियुग के प्रसिद्ध संत जिन्हें लोग संत कबीर के नाम से जानते हैं तथा जिनके दोहे आज भी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं. संत कबीर ही वास्तव में पूर्ण परमेश्वर हैं जो आज से लगभग 624 वर्ष पूर्व अपने तत्वज्ञान का प्रचार करके गए. कबीर साहेब के प्रिय शिष्य आदरणीय धर्मदास जी ने कबीर साहेब जी की अनमोल वाणियों का संकलन कबीर सागर, कबीर साखी, आदि में किया. इसके अतिरिक्त कबीर साहेब द्वारा की गई सभी लीलाओं का स्पष्ट वर्णन हमारे वेदों में वर्णित है.

कमल के फूल पर कबीर परमेश्वर का अवतरन
कबीर साहेब का प्राकट्य सन 1398 (संवत 1455), ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को ब्रह्ममूहर्त के समय कमल के पुष्प पर हुआ था. कबीर जी के संबंध में भ्रांति हैं कि उन्होंने एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से जन्म लिया था. लेकिन यह असत्य है. वेदों में वर्णित विधि के अनुसार परमेश्वर कबीर साहेब हल्के तेजपुंज का शरीर धारण करके सशरीर सतलोक से आए और कमल के पुष्प पर अवतरित हुए. इस घटना के प्रत्यक्ष दृष्टा ऋषि अष्टानंद जी थे.
परमेश्वर कबीर साहेब का लालन-पालन
नीरू और नीमा निसंतान ब्राह्मण दंपति थे, इनको कबीर साहेब ने अपने माता पिता के रूप में चुना. वास्तव में उनका नाम गौरीशंकर और सरस्वती था. वे सच्चे शिवभक्त थे. अन्य ढोंगी ब्राह्मण उनसे ईर्ष्या करते थे. इसका फायदा उठाया मुस्लिम काजीयों ने. बलपूर्वक उनका धर्मांतरण करके उनके नाम नूर अली व नियामत कर दिए गए जिन्हें अपभ्रंश भाषा में नीरू और नीमा कहा जाने लगा. जीविकोपार्जन करने के लिए दंपति ने जुलाहे का कार्य आरंभ कर दिया.
ज्येष्ठ की पूर्णिमा को नीरू और नीमा भी स्नान हेतु जब लहरतारा तालाब पर पहुंचे तो शिशु रूप धारण किए हुए कबीर साहेब को कमल के फूल पर पाया तो शिशु को अपने साथ घर ले आए.
नीमा के पुत्र ने 25 दिनों तक कुछ भी ग्रहण नहीं किया था परंतु ह्रृष्ट-पुष्ट ऐसे था जैसे बालक रोज एक किलो दूध पीता हो. नीमा और नीरू बालक के दूध न पीने से अत्यंत चिंतित थे. कबीर परमेश्वर ने नीरू-नीमा की इस चिंता को दूर करने के लिए शिवजी को प्रेरणा की, शिवजी ऋषि रूप धारण करके आए. तब कबीर जी के कहने पर शिवजी ने नीरू को एक कुंवारी गाय (बछिया) लाने का आदेश दिया. कुंवारी गाय के ऊपर थपकी मारते ही नीचे रखा दूध का पात्र भर गया और परमात्मा ने वह दूध ग्रहण किया. पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेब की इस लीला का वर्णन वेदों में भी है.
जब काजी नीरू के घर पर बालक का नामकरण करने आए, ज्यों ही उन्होंने कुरान खोली उसके सारे अक्षर कबीर-कबीर हो गए तथा परमेश्वर कबीर ने कहा कि उनका नाम कबीर रखा जाए. कुछ समय पश्चात काजी-मुल्ला कबीर साहेब की सुन्नत करने के लिए पंहुच गए. परमात्मा ने उन्हें एक लिंग के स्थान पर कई लिंग दिखाए और कहा कि आपके धर्म में तो एक ही सुन्नत करने का विधान है अब आप क्या करेंगे तथा उन्हें उपदेश दिया कि अल्लाह ने मनुष्यों को बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है. यह लीला देखकर काजी व मुल्ला डरकर भाग गए.
कबीर साहेब का सत्यलोक गमन
कबीर साहेब जी ने लगभग 120 वर्ष तक जुलाहे की भूमिका की और तत्वज्ञान का प्रचार किया. उस समय यह मान्यता प्रचलित थी कि काशी में मरने वाला स्वर्ग जाता है और मगहर में मरने वाला नरक जाता है. तब कबीर साहेब ने काशी के सभी पंडितों को चुनौती दी और मगहर अपने साथ चलने को कहा कि देखना मैं कहां जाता हूं? कबीर साहेब के शिष्यों में दोनों धर्मों के लोग थे जिनमें काशी नरेश राजा बीर सिंह बघेल व मगहर रियासत के राजा बिजली खान पठान भी थे. दोनों ही धर्मों के लोगों ने कबीर साहेब के शरीर का अंतिम संस्कार अपने धर्म के हिसाब से करने के लिए ठान लिया था एवं उन्हें शरीर न मिलने पर गृहयुद्ध की पूरी तैयारी भी कर ली थी. परमेश्वर कबीर सब जानते थे.
परमेश्वर कबीर जी ने मगहर पहुंचकर बहते पानी में स्नान करने की इच्छा जताई. बिजली खान पठान ने शिवजी के श्राप से सूख चुकी आमी नदी के बारे में बताया. तब परमात्मा कबीर जी ने आमी नदी में जल प्रवाहित किया. कबीर जी के लिए एक चादर नीचे बिछाई गई उस पर कुछ फूल बिछाए गए एवं उन पर कबीर साहेब जी ने लेट कर दूसरी चादर ऊपर से ओढ़ ली. सन 1518 (संवत 1575) माघ शुक्ल पक्ष, तिथि एकादशी को परमेश्वर कबीर साहेब जी ने सशरीर इस लोक से प्रस्थान किया. वहां उपस्थित सभी को आकाशवाणी के माध्यम से परमात्मा कबीर साहेब जी ने बताया कि वे स्वर्ग से भी ऊंचे स्थान सतलोक जा रहे हैं तथा हिंदुओं व मुस्लिमों को आदेश दिया कि कोई भी आपस में न लड़े तथा जो भी चादर के नीचे मिले उसे आधे-आधे बांट लें. परमात्मा ने हिंदुओं व मुस्लिमों को प्रेम से रहने का आशीर्वाद दिया जो आज भी मगहर में फलीभूत है.
वहां उपस्थित लोगों ने जब चादर हटाई तो केवल सुगन्धित फूल मिले. उन सुंगधित फूलों को दोनों धर्मों ने आपस में बांट लिया और उन पर यादगार बनाई. आज भी मगहर में यह यादगार मौजूद है. कुछ फूल काशी में कबीर चौरा नामक यादगार पर रखे हैं. परमेश्वर कबीर जी की सभी लीलाओं का वेदों और शास्त्रों में प्रमाण देखने के लिए आप www.jagatgururampalji.org पर जा सकते हैं.


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