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ऐसे में लोग कई बार तांबे के बर्तन का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इस दौरान लोहे के बर्तन का इस्तेमाल करना चाहिए. तांबा सूर्य का कारक है।
न्याय और कर्म के देवता शनिदेव अगर किसी व्यक्ति पर मेहरबान होते हैं, तो उसे हर सुख-सुविधा से पूर्ण कर देते हैं। वहीं, नाराज होने पर व्यक्ति की परेशानियां खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार व्यक्ति को जीवन में एक बार शनि की महादशा, ढैय्या और साढ़े साती का सामना जरूर करना पड़ता है।इसलिए लोगों में हमेशा इस बात का डर होता है कि भगवान शनि देव कहीं उनसे नाराज न हो जाएं। ऐसे में बहुत जरूरी है कि आप भगवान शनि देव की अराधना करते समय कुछ सावधानियां बरतने की जरूरत है।
लोहे के बर्तन से चढ़ाएं तेल
शनिवार के दिन शनिदेव की मूर्ति पर सरसों का तेल अर्पित किया जाता है। ऐसे में लोग कई बार तांबे के बर्तन का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इस दौरान लोहे के बर्तन का इस्तेमाल करना चाहिए. तांबा सूर्य का कारक है।
दिशा का रखें ध्यान
शनिदेव की पूजा में दिशा का ध्यान रखना जरूरी है। आमतौर पर पूर्व की तरफ मुख कर पूजा की जाती है, लेकिन शनिदेब की पूजा पश्चिम दिशा की ओर मुंह कर करना चाहिए इसका कारण यह है कि शनिदेव को पश्चिम दिशा का स्वामी माना जाता है।
शनिदेव की आंखों में न देखें
शनिदेव की पूजा करते समय इस बात का खास ख्याल रखें कि उनकी आंखों में देखकर पूजा न करें। ऐसे में पूजा के समय या तो अपनी आंखें बंद कर लें या फिर उनके चरणों की तरफ देखकर पूजा करें। कहते हैं कि शनि देव की आंखों में आंखे डालकर पूजा करने से उनकी दृष्टि आप पर ही पड़ने लगती है।
न दिखाएं पीठ
शनिदेव की पूजा के दौरान तनकर न खड़े हों। साथ ही, पूजा के बाद जब वहां से हटते हैं, तो उसी अवस्था में हटें, जैसे उनके सामने खड़े हैं। शनिदेव को पीठ नहीं दिखानी चाहिए। इससे वे नाराज हो जाते हैं।
Apurva Srivastav
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