धर्म-अध्यात्म

स्वांगिया माता – भाटी राजवंश की कुलदेवी

HARRY
29 April 2023 5:47 PM GMT
स्वांगिया माता – भाटी राजवंश की कुलदेवी
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चेलक गांव में चेला नामक एक चारण आकर रहे।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | स्वांगिया माता – जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुलदेवी। देवी स्वांगिया का इतिहास बहुत पुराना है। भगवती आवड़ के पूर्वज सिन्ध में निवास करने वाले सउवा शाखा के चारण थे जो गायें पालते और घी व घोडों का व्यापार करते थे। मांड प्रदेश (जैसलमेर) के चेलक गांव में चेला नामक एक चारण आकर रहे।

हाइलाइट्स - +

उसके वंश में मामड़िया जी चारण हुए जिसने संतान प्राप्ति के लिए सात बार हिंगलाज माता धाम की यात्रा की तब विक्रमी सम्वत् 808 में सात कन्याओं के रूप में देवी हिंगलाज ने मामड़िया के घर में जन्म लिया। इनमें बडी कन्या का नाम आवड़ रखा गया।

आवड़ की अन्य बहिनों के नाम आशी, सेसी, गेहली, हुली, रूपां और लांगदे था। अकाल पडने पर ये कन्याएँ अपने माता-पिता के साथ सिन्ध में जाकर हाकड़ा नदी पाकिस्तान के किनारे पर रहीं। पहले इन कन्याओं ने सूत कातने का कर्म किया। इसलिए ये कल्याणी देवी कहलाई।

फिर आवड़ देवी की पावन यात्रा और जनकल्याण की अद्भुत घटनाओं के साथ ही क्रमशः सात मन्दिरों का निर्माण हुआ और समग्र मांड प्रदेश में आवड माता के प्रति लोगों की आस्था बढती गई। देवी का प्रतीक रुप स्वांग(भाला) व सुगन चिड़ी है। ये प्रतीक जैसलमेंर के राज्य चिन्ह में विद्यमान है।

आजादी से पहले तक जैसलमेर के शासक दशहरा, दीपावली के दिन अपने घोड़ों को सजाते समय चांदी या सोने की चिड़िया बनाकर शक्ति के प्रतीक को बैठा कर पूजा करते थे।जैसलमेर के सिक्कों पट्टो-परवानो, स्टांपो, तोरणो आदि पर शुगन चिड़ी की आकृतियों का अंकन किया जाता था।

स्वांगिया माता या आवड़ माता के ये सात मन्दिर निम्नलिखित हैं –

(1) तनोट राय मन्दिर –

तनोट राय मन्दिर

तनोट राय मन्दिर (स्वांगिया माता – जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुलदेवी)

राव तनु ने 8 वी शताब्दी में निर्माण करवाया। इस स्थान पर मोहम्मद बिन कासिम, हुसैनशाह पठान, लंगाहो, वराहों,यवनों जोइयों व खीचियों ने कई आक्रमण किए। तनोट के शासक विजयराव ने देवी के प्रताप से ईरान के शाह व खुरासान के शाह को पराजित कर कुल 22 युद्ध जीते।

सिंध के मुसलमान ने जब विजयराव पर आक्रमण किया तो देवी से प्रार्थना की कि अगर विजयी हुआ तो अपना मस्तक देवी को अर्पित करेगा। युद्ध में देवी ने विजयराव की मदद की और राव की विजय हुई।

इस पर वह मंदिर में जाकर तलवार से अपना मस्तक काटने लगा तो देवी प्रकट हो गई और बोले कि मैनै तेरी पूजा मान ली और अपनी हाथ की सोने की चूड़ उतार कर दी। यही विजयराव इतिहास में विजयराव चूंडाला के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 1965 ई व 1971 ई में पाकिस्तान से युद्ध हुआ। सभी युद्धों में देवी के प्रताप से विजय मिली।

1965 ई के बाद बीएसएफ द्वारा पूजा अर्चना की जाती है। जहाँ 1965 ई में पाकिस्तान के गिराए 300 बम बेअसर हुए थे। देवी की कृपा से पाकिस्तान के सैनिक रात के अंधेरे में आपस में लड़.कर मारे गए। इस समय पाकिस्तान ने 150 किमी तक कब्जा कर लिया था।

तनोट देवी को थार की वैष्णों देवी भी कहा जाता है। BSF की एक यूनिट का नाम तनोट वारियर्स है।

(2) घंटियाली राय मंदिर –

घंटियाली राय मंदिर

घंटियाली राय मंदिर (स्वांगिया माता – जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुलदेवी)

तनोट से 5 KM की दूरी पर दक्षिण-पूर्व में है। वीरधवल नामक पुजारी को नवरात्र के दिनों में देवी ने शेरनी के रूप में दर्शन दिए जिसके गले में घंटी बंधी थी। 1965 ई में पाकिस्तानी सैनिकों ने इस मंदिर की मूर्तियों को खंडित किया था। जिन्हें देवी ने मृत्यु दंड दिया।

(3) देगराय मन्दिर –

स्वांगिया माता - भाटी राजवंश की कुलदेवी

देगराय मन्दिर (स्वांगिया माता – जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुलदेवी)

जैसलमेर के पूर्व में देगराय जलाशय पर स्थित है। महारावल अखैसिह ने इस नवीन मंदिर का निर्माण करवाया था। देवियों ने महिष के रुप में विचरण कर रहे दैत्य को मारकर उसी के सिर का देग बनाकर उससे रक्तपान किया। यहाँ रात को नगाड़ों व घुघरुओं की ध्वनि सुनाई देती है। कभी कभी दीपक स्वतः ही प्रज्ज्वलित हो जाता है।

(4) भादरियाराय मन्दिर –

भादरियाराय मन्दिर

भादरियाराय मन्दिर (स्वांगिया माता – जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुलदेवी)

इसका निर्माण महारावल गजसिंह जी ने बासणपी की लडाई जीतने के पश्चात करवाया और अपनी रानी व मेवाड़ के महाराणा भीमसिंह की पुत्री रुपकंवर के साथ जाकर मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई। महारावल शालीवाहन ने देवी को चांदी का भव्य सिंहासन अर्पित किया।

सिंहासन के ऊपर जैसलमेर का राज्यचिन्ह उत्कीर्ण है जिसे महारावल शालीवाहन सिंह ने भेंट चढा़या। फिर जवाहरसिंह ने इसका जीर्णोद्धार करवाया। शक्तियो ने वहादरिया ग्वाले को परचा दिया । वहादरिया के निवेदन करने पर देवी ने यहीं निवास किया। इसी कारण वाहदरिया भादरिया नाम से प्रसिद्ध हुआ। राव तणु ने यहाँ पहुंच कर देवियों के दर्शन किए।

इस स्थान को आधुनिक रूप संत हरिवंश राय निर्मल ने दिया ।यहाँ पर विशाल गौशाला व एशिया का सबसे बडा़ भूमिगत पुस्तकालय स्थित है। यहाँ पर एक विश्वविद्यालय बनना भी प्रस्तावित है। महाराज ने शिक्षा, पर्यावरण, नशामुक्ति, चिकित्सा एवमं स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर काम किया । कन्या भ्रूण हत्या, दहेज, बाल विवाह का सदा विरोध किया।

यहाँ का शक्ति और सरस्वती का अनूठा संगम अन्यत्र दुर्लभ है।

(5) तेमड़ेराय मंदिर –

तेमड़ेराय मंदिर

तेमड़ेराय मंदिर

जैसलमेर के दक्षिण में गरलाउणे पहाड़ की कंदरा में बना हुआ है। इसका निर्माण महारावल केहर ने करवाया था। केहर ने मंदिर की पहाड़ी के नीचे एक सरोवर का निर्माण करवाया तथा सरोवर के निकट दो परसाले भी बनवाई । यहां देवी की पूजा छछुन्दरी के रुप में होती है।

चारण इसे द्वितीय हिंगलाज मानते है। महारावल अमरसिंह ने तेमडेराय पहाड़ की पाज बंधाई,मंदिर के सामने बुर्ज, पगोथिये व उस पर बंगला बनवाया। महारावल जसवंतसिंह ने परसाल व बुर्ज का निर्माण करवाया व प्रतिष्ठा करवाई। महारावल जवाहरसिंह ने इसके निज मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। यहाँ शक्तियों ने तेमड़ा नामक दैत्य का वध किया था।

बीकानेर महाराजा रायसिंह जी ने अपनी रानी व जैसलमेर की राजकुमारी गंगाकुमारी के साथ यहां की यात्रा की और देवी ने नागिणियों के रुप में दर्शन दिए तो रायसिंह ने मंदिर के सामने खंभो वाला देवल बनाया। करणी माता भी तेमडेराय की परम भक्त थी। इसलिए कुछ लोग करणी जी को स्वांगीया का अवतार भी मानते है।

(6) स्वांगिया माता गजरूप सागर मन्दिर –

(6) स्वांगिया माता गजरूप सागर मन्दिर -

(6) स्वांगिया माता गजरूप सागर मन्दिर (स्वांगिया माता – जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुलदेवी)

यह गजरुप सागर तालाब के पास समतल पहाडी पर निर्मित मंदिर. जिसका निर्माण महारावल गजसिंह ने करवाया था। वे प्रातःकाल उठते ही किले से देवी के दर्शन करते है।

(7) काले डूंगरराय मन्दिर –

काले डूंगरराय मन्दिर

काले डूंगरराय मन्दिर

जैसलमेर से 25 किमी दूर इस मंदिर का जीर्णोद्धार महारावल जवाहरसिंह ने निर्माण कराया।

काले रंग के पहाड़ पर स्थित है। सिंध का मुसलमान इन कन्याओं से बलात विवाह करना चाहता था। सिंध से लौटने समय देवी ने हाकड़ा से मार्ग मांगा परंतु हाकडा के मार्ग नहीं देने पर देवी के चमत्कार से हाकडा़ नदी का पानी सुख गया। इसके पश्चात शक्तियां कुछ समय यहां भी रही थी।

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