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संकष्टी चतुर्थी के दिन जरूर पढ़ें यह कथा...होगी सभी मनोकामना पूरी
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | संकष्टी चतुर्थी के पीछे कई पौराणिक कथाएं छुपी हुई हैं। इन्हीं में से आज एक कथा हम आपके लिए लाए हैं। आइए पढ़ते हैं संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा। एक बार माता पार्वती और भगवान शिव नदी किनारे बैठे हुए थे। इसी दौरान माता पार्वती को चौपड़ खेलने की इच्छा हुई। वहां कोई तीसरा नहीं था ऐसे में माता पार्वती ने निर्णायक की भूमिका के लिए मिट्टी से एक मूर्ति बनाई। साथ ही उसमें जान भी डाल दी। माता पार्वती और भगवान शिव ने उस बच्चे को आदेश दिया कि उसे यह खेल अच्छे से देखना है और अंत में यह फैसला लेना है कि इस खेल में किसी हार हुई और किसकी जीत। दोनों ने खेलना शुरू किया और माता पार्वती बार-बार भगवान शिव को मात दे रही थीं।
खेल चल रहा था। लेकिन उस बालक ने गलती से एक बार माता पार्वती को पराजित घोषित कर दिया। यह सुन पार्वती जी को बहुत गुस्सा आया और इसके चलते उन्हें बालक को श्राप दे दिया और वह लंगड़ा हो गया। उस बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी लेकिन उन्होंने कहा कि यह श्राप अब वापस नहीं हो सकता है। लेकिन वह एक उपाय बता सकती हैं जिससे वह श्राप से मुक्ति पा सकेगा। उन्होंने कहा कि संकष्टी वाले दिन यहां पर पूजा करने कुछ कन्याएं आती हैं। उनसे व्रत विधि जानकर सच्चे मन से व्रत करना।
माता पार्वती के कहेनुसार पूरी श्रद्धापूर्वक और विधि अनुसार उसने व्रत किया। उसकी सच्ची आराधना देख गणेश जी प्रसन्न हो गए। गणेश जी ने उससे उसकी इच्छा पूछी। बालक ने माता पार्वती और भगवान शिव के पास जाने की अपनी इच्छा को जाहिर किया। गणेश जी ने उस बालक की इच्छा पूरी की और उसे शिवलोक पहुंचा दिया। वहां उसे शिव जी मिले। क्योंकि माता पार्वती शिव जी से नाराज होकर कैलाश छोड़कर चली गईं थीं।
शिव ने उस बच्चे से पूछा कि वो यहां कैसे आया। तब उसने संकष्टी के व्रत के बारे में बताया। इसके बाद भगवान शिव ने भी पार्वती को मनाने के लिए उस व्रत को किया। इसके प्रभाव से माता पार्वती प्रसन्न हो गईं और कैलाश वापस लौट आईं। ऐसा माना जाता है कि संकष्टी के दिन गणेश जी की पूजा करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है।